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आदिवासी बहनों ने चट्टान तोड़ बनाये काली मिट्टी के सुंदर बर्तन, खूबसूरती देख दंग रह जाएंगे आप

हाल ही में तमिलनाडू के कोयंबटूर शहर में लगी एक शिल्प प्रदर्शनी में इन बर्तनों को देखा गया है। ये बर्तन देखने में काफी खूबसूरत हैं जिन्हें प्रेस्ली और पामशांगफी नगसैनाओ नाम की दो बहनें लेकर आई थीं। जिन्हें उस प्रदर्शनी में काफी सराहा गया।

आदिवासी बहनों ने चट्टान तोड़ बनाये काली मिट्टी के सुंदर बर्तन, खूबसूरती देख दंग रह जाएंगे आप

Tuesday April 12, 2022 , 4 min Read

वैसे तो मणिपुर अपने पर्यटन के लिए मशहूर है। खूबसूरती के नजरिए से देखा जाए तो भारत के इस शहर को स्विट्जरलैंड कहा जाता है। जहां घूमने के लिए शहीद मीनार, गोविंदजी का मंदिर, विष्णुपुर की झील, लोकटक लेक और सेंद्रा द्वीप, इमा बाजार, केबुल, पुराना महल, संग्रहालय, लमजाओ नैशनल पार्क और कांगला पैलेस जैसी कई प्रसिद्ध जगह मौजूद हैं। मणिपुर जितना अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है उतना ही अधिक फेसम है अपने खान-पान और जायकेदार भोजन के लिए भी। इस स्वादिष्ट भोजन का नाम है कांगशोई। इसमें ताजी हरी सब्जियों के साथ-साथ प्याज, अदरक और लहसुन व अन्य मसालों को उबल कर शोरबा के रूप में तैयार किया जाता है। आमतौर पर इसे रोटी या उबले हुए चावल के साथ परोसा जाता है। 

लेकिन, आजकल मणिपुर अपने मिट्टी से बने कुछ खास तरह के बर्तनों को लेकर काफी चर्चा में है। पत्थरों से घिरे इस इलाके में चारों ओर पथरीली मिट्टी मौजूद है। साथ ही मौजूद है लाल और काले रंग की चिकनी मिट्टी भी। इस मिट्टी से बनाए गए बर्तन दिखने में जितने खूबसूरत हैं उतने ही अंदर से मजबूत भी हैं। इस कारण इन मिट्टी से तैयार किए गए बर्तनों की दिनोंदिन मांग भी बढ़ रही है।

Mitti ke bartan

बर्तन कैसे बनते हैं बिना चाक के

आमतौर पर आपने मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करने के लिए कुम्हारों को चाक का प्रयोग करते हुए देखा होगा। आपको बता दें, कि चाक की मदद से बनाए जाने वाले बर्तन बनाते समय गीली, गुथी हुई मिट्टी को तेज गति से घूमती हुए चाक पर चढ़ाया जाता है। मिट्टी को आकार देने के लिए हल्का सा सरसों का तेल लगाया जाता है। फिर निपुणता के साथ गेंदनुमा मिट्टी को मनचाहा आकार दिया जाता है। 

लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इन बहनों ने इतने सुंदर बर्तन बनाने में केवल अपने हाथ की कलाकारी का उपयोग किया है और देखने में बर्तन इतने सुडौल और सुंदर हैं, कि लगता ही नहीं कि इन्हें हाथ से निखारा गया है। 

सुर्खियों में कैसे आए काली मिट्टी के ये बर्तन 

हाल ही में तमिलनाडु के कोयंबटूर शहर में लगी एक शिल्प प्रदर्शनी में इन बर्तनों को देखा गया था। ये बर्तन देखने में काफी खूबसूरत हैं जिन्हें प्रेस्ली और पामशांगफी नगसैनाओ नाम की दो बहनें लेकर आई थीं।

उस प्रदर्शनी में इन मिट्टी के बर्तनों को काफी सराहा भी गया। इन बर्तनों का उपयोग रोजमर्रा के इस्तेमाल के अलावा भी अन्य कई तरह से किया जा सकता है।

Mitti ke bartan

इन बर्तनों को पकाया जाता है खुली आग में 

भारतीय शिल्प परिषद, तमिलनाडु के निमंत्रण में पहुंची ये बहनें काफी सराही जा रही हैं। उनके द्वारा तैयार किए गए बर्तन इन दिनों काफी मशहूर हैं।

एक मीडिया चैनल से बात करते हुए वे कहती हैं, ”हम इसे बनाने वाली चौथी पीढ़ी हैं। हमारे गांवों के पास पहाड़ियों और जंगलों में सर्पेंटाइन नामक एक चट्टान पाई जाती है, जिससे इस खास तरह के मिट्टी के बर्तनों को बनाया जाता है।”

हालांकि, बीते दो साल कोविड महामारी के कारण काफी मुश्किल भरे गुजरे हैं। अच्छा समय आने के बाद यह काम करने वाले कारीगर काफी खुश हैं। इन बर्तनों को बनाने में चाक की जरूरत नहीं पड़ती है। मिट्टी से बने बर्तनों को पहले धूप में और फिर खुली आग में पकाया जाता है।

Mitti ke bartan

क्या है निर्माण की पूरी विधि

काली मिट्टी से बने इन बर्तनों को बनाना मेहनत भरा काम है। आदिवासी महिलाएं चट्टानों को तोड़कर मिट्टी लाती हैं। कुछ दिन सुखाने के बाद इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट लिया जाता है जिसके बाद इस मिट्टी का बुरादा तैयार होता है।

प्रेस्ली ने बताया, “पिसे हुए पाउडर को हम फिर एक और नरम पत्थर के साथ मिलाते हैं, जिसे हम लिशोन कहते हैं। इसके बाद उसे आटे की तरह गूंथते हैं। लिशोन मिश्रण को नरम और चिपचिपा बनाता है। इस सनी हुई मिट्टी को बांस के सांचों में आकार देते हैं जिसे मौसम के आधार पर एक या दो सप्ताह के लिए सुखाया जाता है।”


Edited by Ranjana Tripathi