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भारत में पेशेवर ब्लॉगिंग के जनक अमित अग्रवाल

आगरा के व्यापारिक परिवार में पले बढ़े अमित ने रुढ़की से इंजीनियरिंग की थी.... कुछ दिन तक हैदराबाद में नौकरी भी की, लेकिन मन नहीं भरा...फिर बसाई ब्लागिंग की अपनी दुनिया और आज दुनिया भर में अपने ब्लाग के बारे में जाने जाते हैं।

भारत में पेशेवर ब्लॉगिंग के जनक अमित अग्रवाल

Sunday July 12, 2015 , 9 min Read

दिल्ली से 206 किलोमीटर दक्षिण में उत्तर प्रदेश के सबसे घनी आबादी वाले शहरों में से एक आगरा महाभारत में अग्रवेना और दुनिया के सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में से एक ताजमहल का शहर है, फिर भी दस टेक्नोलॉजी या टेक टैलेंट वाले शहरों की लिस्ट में शामिल नहीं है। इसके वाबजूद 2004 में शुरू हुए लैबनॉल.ओआरजी के जनक का संबंध इसी शहर से है। यह एक टेक्नोलॉजी ब्लॉग है, जिसे भारत के पहले पेशेवर ब्लॉगर अमित अग्रवाल ने शुरू किया है। दिल से एक तकनीशियन और पेशे से एक लेखक अमित के पास देने के लिए बहुत कुछ है। अमित अग्रवाल ने योरस्टोरी के साथ बात में अपने अब तक के सफर, अपनी कामयाबी की कहानी के बारे में बताया जिनकी वजह से वो आज यहाँ तक पहुंचे हैं।

कारोबारी परिवार का एक इंजीनियर- एक कारोबारी परिवार से जुड़े होने की वजह से अमित भी बड़े होकर अपने पारिवारिक कारोबार से जुड़ना चाहते थे। हालांकि वो एक पढ़ाकू छात्र थे, अपनी कक्षा में अव्वल आया करते थे, लेकिन उन्हें कभी भी कंप्यूटर या इंजीनियरिंग करने की इच्छा नहीं हुई। गणित अमित का सबसे पसंदीदा विषय था और इसी से उन्हें स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने में मदद मिली। वो और भी बहुत कुछ करना चाहते थे और इसी वजह से मेडिसिन करने का फैसला छोड़ना पड़ा। किसी भी संयुक्त परिवार की तरह, परिवार की महिलाएँ चाहती थीं कि वह आगरा में ही रहे, जबकि परिवार के पुरुष उन्हें उनकी पसंद का काम करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने इंजीनियरिंग इसलिए पसंद की, क्योंकि इससे उन्हें मेडिसिन के मुकाबले ज्यादा विकल्प मिलेंगे। यहांँ तक आईआईटी-रूढ़की (तब आरईसी) में उन्होंने कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग का विकल्प चुना। शैक्षणिक रूप से कॉलेज में भी अमित के लिए ज्यादा कुछ नहीं बदला, फर्स्ट इयर के खत्म होने पर वो अपने बैच में अव्वल आए थे।

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अमित कहते हैं, - जब मुझे एक कंप्यूटर मिला, तब मेरी रुचि कोडिंग की ओर नहीं बल्कि सॉफ्टवेयर इंस्टालेशन की ओर थी। मैं ये जानने को उत्सुक रहता था कि किसी कंप्यूटर के अंदर क्या होता है, सिस्टम में किसी सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल करने से किस फाइल में कोई बदलाव होता है। आज भी में कुछ वैसा ही करता रहता हूं।अमित बड़ी शिद्दत से अपने कॉलेज के आखिरी साल की बात याद करते हैं जब उन्होंने इनवेंट्री मैनेजमेंट के तहत मारुति (गुड़गांव फैक्ट्री) के एक प्रोजेक्ट पर काम किया था।

“तब नेटस्केप नेविगेटर ही एकमात्र ब्राउजर हुआ करता था और डेस्कटॉप यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम पर चला करते थे। हमलोग ईमेल साझा किया करते थे (तीन लोगों के लिए एक ईमेल अकाउंट) और लाइब्रेरी में सिर्फ दो कंप्यूटर होने की वजह से कंप्यूटर पर काम करने या ईमेल चेक करने के लिए काफी इंतजार करना पड़ता था।”

पहली (और आखिरी) नौकरी- अमित 1999 में औसत से बेहतर शैक्षणिक प्रदर्शन के साथ ग्रेजुएट हुए और हैदराबाद में एडीपी इंक में ज्वाइन किया जहाँ वो एक डाटाबेस पर पांच साल के लिए काम किया। वह वहां गोल्डमैन सैश और मेरिल लिंच जैसी कंपनियों के लिए यूनिक्स, पर्ल और पीएचपी पर काम किया। अमित ने जब ज्वाइन किया था तब यह 70-80 लोगों की टीम थी और उनके काम को लोग बहुत कम वक्त में ही पहचान लेते थे। दो साल के बाद वो खुद एक टीम की अगुवाई कर रहे थे और उनका फोकस कोडिंग के बजाए प्रबंधन पर शिफ्ट हो चुका था। अमित कहते हैं,  

''एडीपी में काम करने का सबसे बेहतरीन जो नतीजा निकला वो ये था कि मैंने वहां बहुत सारे अच्छे दोस्त बनाए। मैं अपने काम पर रात भर कोडिंग सेशंस के अलवा काफी मेहनत करता था। मेरे लिए यह सीखने का बड़ा मौका था। मैं अपने पारिवारिक कारोबार में ये सब नहीं सीख सकता था। आज मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ वो सब मैंने उसी समय सीखा है। कॉलेज में, पूरा ध्यान थ्योरी पर होता था, लेकिन जीवंत परियोजनाओं से बेहद जरूरी व्यावहारिक ज्ञान हासिल हुआ।''

एडीपी में रहते हुए अमित ने बहुत कुछ सीखा, लोगों से कैसे बर्ताव करना है, प्रोजेक्ट से जुड़े दल के सदस्यों और आम लोगों से कैसे बर्ताव करना है।


भारत के पहले पेशेवर ब्लॉगर का जन्म- अमित हमेशा से ही परिवार के साथ रहना चाहते थे, लेकिन इसके साथ ही वो अपने विकल्पों को भी खुला रखा। एडीपी में पांच साल बिताने के बाद वो अपनी जड़ यानी आगरा वापस लौटने वाले थे। उसी समय उनकी शादी भी हो गई। अमित याद करते हुए बताते हैं,

जब मैं वापस लौटा तो मेरे पास बस एक ही विकल्प बचा था, और वो ये कि मैं फ्रींलांसर के तौर पर काम करना शुरू कर दूं। 2004 में ब्लॉगिंग बिलकुल भी नई चीज थी और बिना सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन नेटवर्किंग-सोशल टूल्स के, ये पूरी तरह से एक अलग ही माहौल था।

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2004 में अमित भारत के पहले पेशेवर ब्लॉगर बने और लैबनॉल की स्थापना की। लैबनॉल का नाम पसंद करने में इसके अलावा कोई खास वजह नहीं थी कि ये नाम अनोखा (अपने नाम की तरह) था। 2005 में सबसे ज्यादा पढ़े गए ब्लॉग एग्रीगेटर (इंडियन फिल्टर ब्लॉग) देसीपंडित ने अमित के लिखे कई ब्लॉग को उठाया और इस तरह उन्हें काफी सफलता मिली। उन्होंने देश के कई शहरों में ब्लॉग कैंपस में शिरकत किया और एकमात्र पेशेवर ब्लॉगर होने की वजह से उन्हें अलग पहचान भी मिली।

लैबनॉल का अब तक का सफर- कंज्यूमर सॉफ्टवेयर पर लैबनॉल का फोकस पिछले 11 साल के दौरान नहीं बदला है। उन्होंने हमें लैबनॉल के अब तक के सफर पर ले गए।

लिखने की शैली काफी उन्नत हुई है। पहले ये शब्दों से भरे होते थे, जबकि अब हमारी लेखनी में विजुअल्स (ऑडियो, वीडियो और एनिमेशन) ज्यादा होते हैं। अब लैबनॉल पर लंबी लेखनी भी काफी सामान्य हो गई है। मैं अपने अनुभवों के आधार पर सॉफ्टवेयर/प्रोडक्ट्स के बारे में जितना स्पष्ट लिख सकता हूं उतना खबरों या स्रोत के आधार पर नहीं लिख सकता। हालांकि गूगल फोटो की घोषणा पहले हुई थी, इस पर एक महीने का वक्त बिताने के बाद मैं इनकी समीक्षा लिखने के लिए खुद को समझा चुका था।

सिमिलरवेब के मुताबिक, लैबनॉल को हर महीने करीब तीस लाख विजिट्स मिलते हैं। लैबनॉल शुरू होने के एक साल के अंदर कमाई करने लगी थी। आज अमित के पास कमाई के रास्ते हैं, इनमें गूगल एड-सेंस, कॉन्टेक्स्टुअल एड नेटवर्क्स, ब्लॉगएड्स के जरिए डायरेक्ट एड और आईडीजी टेक्नेटवर्क्स शामिल हैं। अमित कहते हैं, करीब 40 फीसदी मेरे पाठक अमेरिका में हैं और 30 फीसदी भारत में हैं। बाकी बचे 30 फीसदी पाठक दुनिया भर के देशों के हैं।”

अमित खुद को दिल से एक ऐसे तकनीशियन मानते हैं जो नई-नई चीजें बनाना चाहता है। उनके ही शब्दों में, 'तकनीक मेरी जिंदगी है, मैं हमेशा इसके बारे में ही सोचता रहता हूं, यहां तक कि जब मैं नहा रहा होता हूं, तब भी मैं इसके बारे में ही सोचता रहता हूं। इससे हमारा ज्ञान बढ़ता है और हम ज्यादा काम कर सकते हैं।'

अमित को हमेशा से किसी सवाल को हल करने के लिए टूल या सॉफ्टवेयर बनाने में मजा आता था। उनके लिए एक ब्लॉग का होना और वो भी काफी पहुंच वाला, काफी फायदे की चीज है। पिछले दो साल के दौरान उन्होंने कई प्रोजेक्ट्स पर काम किए, तभी उनका ध्यान लिखने से कुच बनाने की ओर हुआ। इनमें सिंगल पेज एप्स, एमपी3 वाले टूल्स, वेब ब्राउजर पर प्रतिलिपि, पॉडकास्ट गैलरी, गूगल ड्राइव पर पॉडकास्ट और अन्य शामिल हैं। उसने गूगल डॉक/ड्राइव में कई सारे लेख/एप्स लिखे हैं। अमित इन आइडियाज को रेडिट (जीरो डॉलरमूवीज प्रोजेक्ट), दोस्तों, यूजर्स और फोरम्स से हासिल करते हैं। वो याद करते हुए बताते हैं,

मेरे एक दोस्त को टिकट बुकिंग के लिए छोटी खिड़की होने की वजह से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। इस परेशानी से निजात दिलाने के लिए मैंने जरूरी बातों को ऑटो फिल करने की सोची। जब मैंने इसे आम लोगों के लिए जारी किया तो देश भर के ट्रेवेल एजेंट्स ने इसे खरीदा और आज वो इन्हें खूब इस्तेमाल कर रहे हैं।

इनसे पैसा कमाने के लिए वो फ्रीमियम मॉडल का पालन करते हैं, जहां कुछ फीचर्स मुफ्त में दिए जाते हैं, जबकि ज्यादातर के पैसे देकर फायदा उठाया जा सकता है। फिलहाल लैबनॉल की आय कुछ करोड़ रुपयों में है।

एक दशक तक की सीख- अमित सोचते हैं कि सबसे बड़ी दिक्कत एक टीम को गठित न कर पाना है जिसके सहारे वो दूसरे इलाकों में विस्तार कर सकते थे। वो तकनीशियनों और ऑनलाइन समूहों के लिए निम्नलिखित सलाह साझा करना चाहते हैं:

1. एक अच्छा कोड वो होता है जो लिखने का कम और उस सोच की प्रक्रिया पर ज्यादा फोकस होता है जिसकी मदद से ऊंचाई तक पहुंचा जा सकता है।

2. जितना हो सके चीजों को साधारण रखें। मैं उन प्रोडक्ट्स को तरजीह देता हूं जो सिर्फ एक चीज कर सकती हो, लेकिन उसे अच्छी तरह से कर सकती हो। उदाहरण के लिए, ड्रॉपबॉक्स।

3. कंज्यूमपर प्रोडक्ट कंपनी और ब्रांड्स के लिए ये मददगार हो सकता है अगर वो जनसंपर्क में बेहतर हों। इस बात पर कंपनी की धारणा बनती या बिगड़ती है कि वो ग्राहकों की समस्याओं और उनकी पूछताछ को किस तरह हैंडल करती है।

4. अचानक से लोगों में डेस्कटॉप को छोड़ सिर्फ मोबाइल लेने का चलन शुरू हो गया है। मुझे नहीं पता कि ये सही है या नहीं।

भारत के टॉप टेक ब्लॉग की पहचान क्या है?

1. सिर्फ उन चीजों को बनाने में ध्यान केंद्रित करें जिन्हें आप प्यार करते हैं और जिन्हें आप खुद इस्तेमाल कर सकें। (और परिवार, दोस्तों को भी लेने की सलाह दे सकें)

2. आज की दुनिया की समस्याओं का समाधान तलाशें। उनकी कोई कमी नहीं है।

3. अगर आप पूरे समय के लिए ब्लॉगिंग करना चाहते हैं, तो कृप्या एक बार फिर से सोच लें। ऐसी कई बातें होंगी जो आपके नियंत्रण में नहीं होंगी और आपको उनका सामना करना पड़ेगा।

4. आप अपनी सीमाओं को जानें। इंडियनब्लॉगर्स.ओआरजी भारत में सक्रिय ब्लॉगर्स की सूची रखता है। यह उन ब्लॉगर्स की भी जानकारी रखता है, जो पिछले कुछ समय में गायब हो गए हैं। कई बार, ब्लॉगर अपनी इच्छाओं को खो देता है, तो कई बार उसे कोई अच्छी नौकरी का प्रस्ताव मिल जाता है और इसलिए वो ब्लॉगिंग को छोड़ देता है।

5. पैसा कमाना प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए। जुनून प्राथमिक है, कारोबार दूसरे नंबर पर होनी चाहिए। इसने अमित की भी काफी मदद की, वो वही लिखते थे जो उन्हें पसंद आता था और इसी के दम पर वो आज इतने आगे बढ़ पाए हैं।

6. अपने पाठकों के प्रति ईमानदार रहें और जिस चीज को आप नहीं जानते हैं, लोगों के सामने ये दिखाने की बिलकुल भी कोशिश न करें कि आप उसे जानते हैं।