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जानिए कहां और कैसे बनता है भारत की आन-बान शान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा

धारवाड़ में बनने वाले 'प्रामाणिक' भारतीय तिरंगे की पूरी कहानी

जानिए कहां और कैसे बनता है भारत की आन-बान शान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा

Tuesday August 21, 2018 , 6 min Read

 प्लास्टिक के झंडे खरीदकर जो आप अक्सर अपनी देशभक्ति की भावनाओं को जाहिर करते हैं वह केवल एक वाणिज्यिक संस्करण (कॉमर्शियल वर्जन) है। धारवाड़ जिले के बेंगेरी गांव में कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (केकेजीएसएस) पूरे देश के लिए भारतीय ध्वज का एकमात्र विनिर्माण और आपूर्ति सुविधा घर है।

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इसकी स्थापना के तुरंत बाद, कर्नाटक के आसपास लगभग 58 संस्थानों को केकेजीएसएस के तहत लाया गया था। जिसके बाद संघ ने हुबली को अपना हेड ऑफिस चुना और यहां से काम करना शुरू किया। 

अभी कुछ दिन पहले भारत के बड़े और छोटे शहर तिरंगे के रंग में रंगे हुए दिख रहे थे। दरअसल हर साल 15 अगस्त को आजादी का सबसे बड़ा त्यौहार मनाया जाता है। इसी के उपल्क्ष्य में लगभग हर शहर की सड़कें पर विक्रेता हर आने-जाने वाले को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को बेच रहे थे। हर साल आजादी से इस अवसर पर लोग अपने तिरंगे के प्रति खासा प्यार दिखाते हैं। वैसे आपके मन में कभी तो ये विचार आता होगा कि जिस तिरंगे से हमारी आन-बान शान है वो आता कहां से है? 

चूंकि भारत ने अभी हाल ही में 15 अगस्त को अपना 72 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया है, तो चलिए भारत की ऐसी एकमात्र फैक्ट्री की यात्रा करते हैं जो प्रामाणिक राष्ट्रीय ध्वज बनाती है। जी हां, सही पढ़ा 'प्रामाणिक राष्ट्रीय ध्वज'। प्लास्टिक के झंडे खरीदकर जो आप अक्सर अपनी देशभक्ति की भावनाओं को जाहिर करते हैं वह केवल एक वाणिज्यिक संस्करण (कॉमर्शियल वर्जन) है। धारवाड़ जिले के बेंगेरी गांव में कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (केकेजीएसएस) पूरे देश के लिए भारतीय ध्वज का एकमात्र विनिर्माण और आपूर्ति सुविधा घर है। यहां की खास बात ये है कि यहां विभिन्न धर्मों से आर्थिक रूप से पिछड़ी महिलाओं के एक छोटे समूह ने अपने जीवन को राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनाने के लिए समर्पित किया है।

कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ का इतिहास

केकेजीएसएस की स्थापना 1 नवंबर, 1957 को गांधीवादियों के एक समूह ने की थी जो इस क्षेत्र में खादी एवं अन्य गांव उद्योगों के विकास के लिए संघ बनाने के लिए आए थे। वेंकटेश टी मगदी और श्रीरंगा कामत को क्रमशः पहले अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया था। इसकी स्थापना के तुरंत बाद, कर्नाटक के आसपास लगभग 58 संस्थानों को केकेजीएसएस के तहत लाया गया था। जिसके बाद संघ ने हुबली को अपना हेड ऑफिस चुना और यहां से काम करना शुरू किया। हुबली स्थित हेड ऑफिस 17 एकड़ में फैला हुआ है। यहां विनिर्माण सुविधाओं के अलावा टेक्सटाइल केमिस्ट्री में छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए एक प्रशिक्षण कॉलेज भी है। हालांकि यहां 1982 में खादी का उत्पादन शुरू हुआ। इसके अलावा फ्लैग विनिर्माण इकाई ने 2004 में अपना काम शुरू किया।

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इसके संस्थापकों ने क्षेत्र के आसपास रहने वाले आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के हित के लिए केकेजीएसएस में ध्वज सुविधा की स्थापना के लिए काफी लड़ाई लड़ी। आज, 100 से अधिक विशेषज्ञ सूत कातनेवाला और बुनकरों को ध्वज बनाने में नियोजित किया गया है।केकेजीएसएस के प्रबंधक-ध्वज खंड, नागवेनी कलवाड़ कहते हैं कि जिस फेडरेशन को महज 10,500 रुपये के शुरुआती निवेश के साथ शुरू किया गया था वह आज प्रति वर्ष 1 करोड़ रुपये से अधिक के झंडे का निर्माण करता है।

केकेजीएसएस में ही यह एकमात्र फैसिलिटी क्यों है

भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप ध्वज का निर्माण करने के लिए देश में केकेजीएसएस एकमात्र फैसिलिटी है। कपड़ा, जींस की तुलना में बहुत मजबूत सामग्री, बागलकोट में केकेजीएसएस की बुनाई इकाई में फैली हुई है और तीन लॉट में विभाजित है। फिर प्रत्येक झंडा भारतीय ध्वज के एक रंग के साथ रंगा जाता है। तब कपड़े को आकार में काटा जाता है और नीले अशोक चक्र सफेद कपड़े पर मुद्रित होते हैं। भारतीय ध्वज बनाने के लिए तीन टुकड़े एक साथ सिलाई जाते हैं।

यह कपड़ा जीन्स के मटेरियल से भी अधिक मजबूत होता है। यहाँ तैयार किए गए राष्ट्रीय ध्वज का कपडा कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (KKGSS) की ही सूत कातने वाली इकाई में तैयार किया जाता है। जिसे 3 भागो में विभाजित किया गया है। इसके दो भागों को भारतीय ध्वज के केसरिया व हरे रंग में रंगा जाता है व सफेद भाग पर अशोक चक्र प्रिंट किया जाता है। जिसके बाद भारतीय ध्वज बनाने के लिए तीन टुकड़ों को एक साथ सिला जाता है। केकेजीएसएस में 60 सिलाई मशीनें हैं जो बीआईएस द्वारा तय मानकों के अनुरूप झंडा तैयार करती हैं। प्रत्येक ध्वज को एक महत्वपूर्ण मानदंड के अनुरूप होना चाहिए। इस्तेमाल से पहले पूरे मटेरियल को 18 बार गुणवत्ता जांच से गुजरना पड़ता है।

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ध्वज की चौड़ाई और लंबाई अनुपात 2:3 में होनी चाहिए और चक्र को ध्वज के दोनों ओर प्रिंट करना होता है। दोनों प्रिंट पूरी तरह मेल खाते हों। अगर इसके बाद भी कोई कमी रह जाती है तो बीआईएस पूरा मेटेरियल रिजेक्ट कर देती है। कठोर मापदंडो के बाद भी बीआईएस द्वारा केवल 10% माल ही साल में रिजेक्ट होता है। भेजे गए प्रत्येक सामान को बीआईएस द्वारा निरीक्षण के अधीन किया जाता है और अगर एक भी झंडे के साथ कोई दिक्कत मालूम होती है तो पूरा माल रिजेक्ट किया जा सकता है। झंडे को नौ आकारों में बनाया जाता है। सबसे छोटा 6×4 इंच है जबकि सबसे बड़ा 21x14 फीट होता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले लगभग 10 सालों से यहाँ के स्टाफ में अधिक बदलाव नहीं हुआ है।

10 से अधिक वर्षों तक यहां काम कर रहीं निर्मला कहती हैं कि अधिकांश वर्कर कठिन गाइडलाइन के अंतर्गत काम कर नहीं पातें और किसी दुसरे काम की तलाश में चलें जाते हैं। केकेजीएसएस में निर्मल जैसे श्रमिकों के लिए, झंडा बनाना सिर्फ आजीविका का स्रोत ही नहीं है बल्कि देश की सेवा करने का उनका तरीका है, कुछ ऐसा जिस पर उन्हें गर्व है और वे अपने बाकी के जीवन में भी इसे जारी रखना चाहते हैं।

वे सभी एकजुट होकर कहते हैं "वो सभी राष्ट्रीय झंडे जो आप किलों पर, सरकारी ऑफिस में, खेल के मैदानों में व इंटरनेशनल फ़ोरम्स में देखते है , वो सभी यहाँ बनाए जाते है, हम उन्हें बनाते है।" वे कहते हैं "हम सभी यहां केकेजीएसएस में विभिन्न धर्मों के हैं, लेकिन एक बार जब हम परिसर के अंदर आ जाते हैं, तो हमारा पूरा ध्यान राष्ट्रीय ध्वज को सही से बनाने पर होता है। हमारे पास जाति या धर्म के बीच अंतर जैसे व्यर्थ विचारों के लिए कोई समय नहीं है। हमें एकजुट होने और ईमानदारी से अपने संबंधित कर्तव्यों को निर्वहन करने की आवश्यकता है।" 

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