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असम की धरोहर से दुनिया को रू-ब-रू कराने में जुटी बीनापानी

प्राचीन हस्तकला को दुनिया-भर में भी फैलाने की कोशिश स्थानीय सिल्क से सामान बनाकर किया एक्सपोर्टआज दुनिया के कई मुल्कों में करती हैं सप्लाईस्थानीय कारीगरों की संवार रही है जिंदगीआज गुवाहाटी की शान है ‘मिस पेंसी’

असम की धरोहर से दुनिया को रू-ब-रू कराने में जुटी बीनापानी

Monday November 14, 2016 , 4 min Read

गुवाहाटी में एक पढ़े लिखे परिवार में जन्मी बीनापानी तालुकदार ने अपनी मेहनत और दूरदर्शिता से आर्ट एण्ड क्राफ्ट के सामान्य से काम को दुनिया भर में फैलाया और इस काम को नए आयाम दिया। उन्होंने एक एनजीओ के गठन के द्वारा दूरस्थ इलाकों में रहने वाले लोगों को उनकी प्राचीन कला के साथ बने रहने के लिये प्रोत्साहित किया और इस काम के बहाने उनकी आर्थिक मदद भी की।

बीनापानी तालुकदार

बीनापानी तालुकदार


बचपन से ही बीनापानी की रुचि आर्ट और क्राफ्ट में थी। दिसपुर में पढ़ाई के दौरान उन्हें सुकुमार तालुकदार से प्यार हुआ और उन्होंने शादी कर ली। एक बेटे के जन्म के बाद उनके परिवार में आई कुछ आर्थिक तंगी के चलते बीनापानी ने डायरेक्ट्रेट आॅफ इंडस्ट्री एण्ड काॅमर्स (डीआईसी) के सहयोग से एक छोटे से कुटीर उद्योग की नींव रखी। नाम रखा ‘मिस पेंसी’।

सूखे फूलों से घर इत्यादि को सजाना संवारना असम की एक पुरानी संस्कृति है जिसमें दूर-दराज के इलाकों में फूलों को इकट्ठा कर सूर्य की रोशनी में सुखाकर प्राकृतिक रसायनों से सुरक्षित किया जाता है। इस तरह सुरक्षित रखे गए फूल देखने में ताजे ही लगते हैं और बहुत समय तक ठीक रहते हैं। चूंकि यह सारा काम हाथों से ही किया जाता है इसलिये इसे बड़े स्तर पर करना एक बड़ी चुनौती था और बीनापानी ने इस काम को सफलतापूर्वक करने की ठानी।

बीनापानी ने ‘मिस पेंसी’ को बहुत छोटे स्तर पर शुरू किया और खुद ही बांस और सूखे फूलों से सजावटी पीस बनाकर उन्हें अपने यहां बेचना शुरू किया। इस काम को शुरू करने के कुछ समय बाद उन्होंने कुछ स्थानीय महिलाओं को साथ लेकर असम वीमेन वेलफेयर सोसाइटी के नाम से एक एनजीओ का गठन किया। उनकी सोच थी कि वे ग्रामीण महिलाओं को कच्चा माल उपलब्ध करवाएंगी और उनसे माल तैयार करवाकर ‘मिस पेंसी’ के जरिये दुनिया के सामने रखेंगी।

बीनापानी का ‘मिस पेंसी’ गुवाहाटी में आने वाले सैलानियों के बीच जल्द ही एक जाना-माना नाम बन गई और आसाम की यह पुरातन कला दुनिया की नजरों में आ गई। इसके बाद उन्होंने इस कला को दुनिया भर में फैलाने की सोची एक्सपोर्ट के बारे में विचार करने लगीं।

‘‘मैंने विचार किया कि क्यों न इन सूखे हुए फूलों की विदेशों में भेजा जाए लेकिन जल्द ही मेरी समझ में आ गया कि इन्हें एक्सपोर्ट करना टेढ़ी खीर है। इसके बाद मैंने अपने डिजाइनिंग के कौशल का प्रयोग किया और आसाम की प्रसिद्ध ऐरी सिल्क के हैंडबैग और स्टोल तैयार किये।’’

एक प्रदर्शनी में बीनापानी के बनाए इन सामानों को नेशनल स्माल इंडस्ट्री काॅरपोरेशन के निदेशक ने बहुत पसंद किया और उन्हें ब्राजील में आयोजित बी2बी प्रदर्शनी में इन चीजों को प्रदर्शित करने का मौका दिया। बीनापानी के बनाए इन हैंडबैग और स्टोल को प्रदर्शनी में आए विदेशी खरीददारों ने बहुत पसंद किया और एक अफ्रीकी कंपनी ने उन्हें 10 हजार पीस का आॅर्डर दिया।

‘‘यह मेरी जिंदगी का पहला आॅर्डर था जिसे पूरा करने के लिये बहुत पूंजी की जरूरत थी। मैंने कंपनी के परचेज़ आॅर्डर के आधार पर बैंक से लोन लिया जिसके लिये अपनी पारिवारिक संपत्ति को भी गिरवी रखना पड़ा। चूंकि सारा माल हाथ से तैयार होना था इसलिये इसे पूरा होने में एक साल का समय लगा। चूंकि मुझे एक्सपोर्ट का अनुभव नहीं था इसलिये इस काम में मुझे नाममात्र का ही मुनाफा हुआ लेकिन इस अनुभव से मैंने काफी कुछ सीखा।’’

इस आॅर्डर को पूरा करने के बाद बीनापानी का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने कई देशों में होने वाली प्रदर्शनियों में भाग लेना शुरू किया और उन्होंने ‘‘मिस पेंसी’’ का नाम बदलकर ‘‘पेंसी एक्सपोर्ट’’ रख दिया। अपनी लगन और काम के प्रति समर्पण के कारण जल्द ही ‘‘पेंसी एक्सपोर्ट’ को दुनियभर से एक्सपोर्ट के आॅर्डर मिलने लगे। 

"मैं हमेशा नए उत्पाद बनाने और काम के साथ प्रयोग करने में लगी रहती हूँ। आज के समय में मेरे पास पुर्तगाल, स्पेन, रूस, जर्मनी सहित कई देशों से काम के आॅर्डर हैं। चूंकि आज पूरे विश्व में चाईनीज़ सामान की भरमार है और हमारा सारा सामान हस्तनिर्मित है इसलिये यह खरीददारों की पहली पसंद है। इसके अलावा मैंने कभी अधिक मुनाफा कमाने के लिये क्वालिटी के साथ समझौता नहीं किया।’’

वर्तमान समय में बीनापानी का गुवाहाटी में एक शोरूम है जिसे उनकी अनुपस्थिति में उनके पति संभालते हैं। इसके अलावा वे अपना सामान अब भी गांवों में ही स्थानीय लोगों से तैयार करवाती हैं। उनका मानना है कि इन लोगों से काम करवाकर वे इन लोगों को रोजगार देने के साथ-साथ इन्हें अपनी जड़ों से जुड़े रहने का मौका दे रही हैं।

भविष्य में बीनापानी यूरोप में अपना एक शोरूम खोलना चाहती हैं और उन्हें उम्मीद है कि जल्द उनका यह सपना पूरा होगा।