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जिंदगी का मतलब सिखाने के लिए यह अरबपति अपने बच्चों को भेजता है काम करने

जिंदगी का मतलब सिखाने के लिए यह अरबपति अपने बच्चों को भेजता है काम करने

Monday August 14, 2017 , 5 min Read

आज के आधुनिक युग में एक ऐसा ही पिता है जिसके पास किसी राजा जैसी संपत्ति है, लेकिन वह अपने बच्चों को थोड़े पैसे देकर कुछ दिनों के लिए बाहर भेज देता है और अपनी जिंदगी खुद जीने को कहता है। 

<b>अपने परिवार से मिलने के बाद हितार्थ (फोटो साभार: सोशल मीडिया)</b>

अपने परिवार से मिलने के बाद हितार्थ (फोटो साभार: सोशल मीडिया)


ढोलकिया का परिवार सूरत में रहता है। वह हरे कृष्णा डायमंड एक्सपोर्ट्स कंपनी के मालिक हैं। इस कंपनी की वैल्यू 6,000 करोड़ के आस-पास है। 

घनश्याम ढोलकिया के परिवार में सालों से यह परंपरा चली आ रही है कि बच्चों को विलासितापूर्ण जीवन से अलग संघर्ष और चुनौतियों का एहसास कराने बाहर भेजा जाए।

बचपन में हम सब ने ऐसी कहानियां पढ़ी और सुनी होंगी जिनमें कोई राजा अपने बच्चों को जिंदगी के मायने सिखाने के लिए बिना पैसों के बाहर भेज देते थे और उनसे आम आदमी की जिंदगी बिताने को कहते थे। आज के आधुनिक युग में एक ऐसा ही पिता है जिसके पास किसी राजा जैसी संपत्ति है, लेकिन वह अपने बच्चों को थोड़े पैसे देकर कुछ दिनों के लिए बाहर भेज देता है और अपनी जिंदगी खुद जीने को कहता है। उस पिता का नाम है घनश्याम ढोलकिया। ढोलकिया का परिवार सूरत में रहता है। वह हरे कृष्णा डायमंड एक्सपोर्ट्स कंपनी के मालिक हैं। इस कंपनी की वैल्यू 6,000 करोड़ के आस-पास है। ढोलकिया परिवार में सालों से यह परंपरा चली आ रही है कि बच्चों को विलासितापूर्ण जीवन से अलग संघर्ष और चुनौतियों का एहसास कराने बाहर भेजा जाए।

घनश्याम अपने बच्चों को आसानी से ऐशो-आराम की जिंदगी मुहैया नहीं कराते बल्कि उन्हें आम आदमी के तौर पर कुछ दिन के लिए बाहर भेज दुनिया की तल्ख हकीकतों से रूबरू कराते हैं। इस बार उनके सातवें नंबर के बेटे 23 वर्षीय हितार्थ ढोलकिया ने एक महीने तक हैदराबाद में एक आम आदमी की तरह जिंदगी बिताई। पिता ने उन्हें 500 रुपये दिए और एक फ्लाइट टिकट दिया। घर से बाहर आने के बाद हितार्थ ने जब टिकट देखा तो पता चला कि उन्हें हैदराबाद जाकर यह चुनौती झेलनी है।

अपने बेटे को 30 दिन बाद देखकर पिता घनश्याम अपने आंसुओं को नहीं रोक सके

अपने बेटे को 30 दिन बाद देखकर पिता घनश्याम अपने आंसुओं को नहीं रोक सके


घर से बाहर आने के बाद हितार्थ ने जब टिकट देखा तो पता चला कि उन्हें हैदराबाद जाकर आम जीवन जीने की चुनौती झेलनी है। हितार्थ 10 जुलाई को हैदराबाद पहुंचे और वहां से एयरपोर्ट बस से सिकंदराबाद चले गए।

फैमिली बिजनेस में आने से पहले उनके पिता ने उनसे बिना परिवार का नाम इस्तेमाल किए और मोबाइल फोन के बगैर दूर जाकर रहने के लिए कहा ताकि वह जिंदगी के संघर्षों का अनुभव ले सकें। उनके पिता ने हितार्थ को यह भी नहीं बताया कि उन्हें जाना कहां है। घर से बाहर आने के बाद हितार्थ ने जब टिकट देखा तो पता चला कि उन्हें हैदराबाद जाकर आम जीवन जीने की चुनौती झेलनी है। हितार्थ 10 जुलाई को हैदराबाद पहुंचे और वहां से एयरपोर्ट बस से सिकंदराबाद चले गए। यहां उन्होंने पैकेजिंग यूनिट में काम किया और सड़क किनारे ढाबों पर खाना खाया।

वह सिकंदराबाद में एक महीने तक एक कमरे में कई बाकी कर्मचारियों के साथ ठहरे। सबसे पहले उन्होंने मैकडॉनल्ड में नौकरी की और फिर एक मार्केटिंग कंपनी में डिलिवरी बॉय का काम किया। वह शू कंपनी में सेल्समैन भी बने। पिता की चुनौती के मुताबिक उन्होंने 4 हफ्ते में 4 नौकरियां कीं और महीने के अंत तक 5000 रुपये कमाए। इस दौरान उन्होंने अपनी पहचान नहीं बताई। 30 दिन पूरे होने के बाद हितार्थ का परिवार उस दुकान में पहुंचा, जहां वह काम करता था। हितार्थ ने अमेरिका से पढ़ाई की है और उनके पास डायमंड ग्रेडिंग में सर्टिफिकेट भी है लेकिन इसके बावजूद उन्हें किसी ने नौकरी नहीं दी।

अपने सभी भाइयों के साथ हितार्थ

अपने सभी भाइयों के साथ हितार्थ


ढोलकिया परिवार में बरसों से परंपरा है कि बच्चों को विलासितापूर्ण जीवन से अलग संघर्ष का एहसास कराने बाहर भेजा जाए। पिंटू तुलसी भाई ढोलकिया ने सबसे पहली बार 'असल जिंदगी' का अनुभव लिया था।

हितार्थ ने कहा, 'मैंने US में पढ़ाई की है। सिकंदराबाद में मुझे 100 रुपये में एक कमरा मिल गया, जहां मैं 17 लोगों के साथ रहा।' हितार्थ ने न्यू यॉर्क से मैनेजमेंट की पढ़ाई की है।' ढोलकिया परिवार में बरसों से परंपरा है कि बच्चों को विलासितापूर्ण जीवन से अलग संघर्ष का एहसास कराने बाहर भेजा जाए। पिंटू तुलसी भाई ढोलकिया ने सबसे पहली बार 'असल जिंदगी' का अनुभव लिया था। अब पिंटू हरी कृष्णा एक्सपोर्ट के सीईओ है। 30 दिन पूरे होने के बाद हितार्थ ने अपने परिवार को सूचना दी कि वह कहां रह रहा है। उसके बाद उनका परिवार हैदराबाद आया और उस दुकान में पहुंचे जहां हितार्थ काम करता था।

हितार्थ ने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि उन्हें हैदराबाद में ऐसी कई चीजें पता चलीं जिनसे वे वाकिफ नहीं थे। वह पूरी तरह से शाकाहारी हैं, लेकिन उन्हें इस दौरान एक बार चिकन करी भी खानी पड़ गई। हितार्थ ने हैदराबाद में तीन नौकरियां कीं। इसके बाद जब उन्होंने 30 दिन पूरा करने के बाद अपने घरवालों को फोन किया तो उन सबकी आंखों से आंसू निकल पड़े। हितार्थ के वापस आने पर एक बड़ा पारिवारिक समारोह का आयोजन भी किया गया। यहां भी उनके पिता ने नम आंखों से अपने बेटे को गले लगाया।

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