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छत्तीसगढ़ की इस आईएएस अफसर ने अपने प्रयासों से बदल दिए जिले के सरकारी स्कूल

छत्तीसगढ़ की इस आईएएस अफसर ने अपने प्रयासों से बदल दिए जिले के सरकारी स्कूल

Tuesday August 21, 2018 , 5 min Read

यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है... 

डॉक्टर से आईएएस बनीं प्रियंका शुक्ला अब छत्तीसगढ़ की सामाजिक समस्याओं का इलाज करती हैं। उन्होंने 2016 में 'यशस्वी जशपुर' नाम से एक अभियान शुरू किया था जिससे हायर सेकेंडरी और हाई स्कूलों की हालत सुधारी जा सके।

बच्चों के साथ कलेक्टर प्रियंका शुक्ला

बच्चों के साथ कलेक्टर प्रियंका शुक्ला


प्रियंका शुक्ला ने डीएमएफ फंड्स का इतने सही तरीके से उपयोग किया कि जिले में स्कूलों और शिक्षा की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार जिले के 143 में से 51 स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की सफलता का प्रतिशत 100% रहा।

छत्तीसगढ़ की जब भी बात आती है तो खनिज संपदा, नक्सल, हिंसा और पिछड़ेपन जैसी बातें जरूर सुनने को मिलती हैं। मध्य प्रदेश को काटकर बने इस नए राज्य में विकसित होने की काफी संभावनाएं हैं और यह राज्य उस रास्ते पर चल निकला है। अलग-अलग जिलों में लोग और कई अधिकारी अपनी नायाब सोच और सच्चे प्रयासों की बदौलत सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। ऐसा ही एक जिला है जशपुर जहां की डीएम प्रियंका शुक्ला ने शिक्षा की दिशा में अच्छे और बड़े कदम उठाए हैं।

डॉक्टर से आईएएस बनीं प्रियंका शुक्ला अब छत्तीसगढ़ की सामाजिक समस्याओं का इलाज करती हैं। उन्होंने 2016 में 'यशस्वी जशपुर' नाम से एक अभियान शुरू किया था जिससे हायर सेकेंडरी और हाई स्कूलों की हालत सुधारी जा सके। इस अभियान के लिए फंड्स की जरूरत डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (DMF) के जरिए पूरी की गई। यह फाउंडेशन उन जिलों में बनाया गया है जहां खनन से जुड़ी गतिविधियां संचालित होती हैं। इससे मिले पैसों को जिले के विकास में ही खर्च कर दिया जाता है।

प्रियंका शुक्ला ने डीएमएफ फंड्स का इतने सही तरीके से उपयोग किया कि जिले में स्कूलों और शिक्षा की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार जिले के 143 में से 51 स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की सफलता का प्रतिशत 100% रहा। ये आंकड़ा इसी साल के दसवीं और बारहवीं के परिणामों का है। ये आंकड़े इसलिए भी सुखद हैं क्योंकि जशपुर जिला रायपुर से लगभग 300 किलोमीटर की दूरी पर है जहां आदिवासियों की आबादी 67 प्रतिशत है।

इस परीक्षा में 77 प्राइवेट स्कूलों में से 22 ऐसे थे जिन्होंने भी 100 प्रतिशत सफलता हासिल की। जशपुर में कभी किसी स्कूल में 100 प्रतिशत रिजल्ट हासिल करना एक सपना हुआ करता था। लेकिन आज यह हकीकत बन चुका है। इसके पीछे आईएएस प्रियंका शुक्ला का बड़ा रोल है। इतना ही नहीं पूरे जिले में दसवीं का परिणाम 89 प्रतिशत रहा तो वहीं बारहवीं का रिजल्ट 93.5 प्रतिशत रहा। जो बच्चे अच्छा करते हैं उन्हें दूसरी जगहों पर फ्लाइट से घुमाने भी ले जाया जाता है।

इस मुकाम को हासिल कैसे किया गया इस बाबत द संडे स्टैंडर्ड से बात करते हुए प्रियंका शुक्ला कहती हैं, 'सरकारी स्कूलों के सालाना कैलेंडर में कई ऐसी चीजों को जोड़ा गया जिससे बच्चों को सही दिशा मिली। इसमें शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मदद ली गई। मासिक परीक्षण जैसी पहलें शुरू की गईं।' जब जिले के स्कूलों में नया सत्र आरंभ होता है तो स्कूल के प्रिंसिपल डीएम को आमंत्रित करते हैं और बच्चों का ओरिएंटेशन सत्र चलता है।

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सत्र शुरू होने से लेकर हर महीने और छमाही तौर पर प्लान तैयार किए जाते हैं। प्री बोर्ड एग्जाम के पहले मॉक क्वैश्चन पेपर तैयार किए जाते हैं और जिले के हर स्कूलों को भेजे जाते हैं। जो बच्चे अच्छा करते हैं उनकी उपलब्धियों को यशस्वी जशपुर की वेबसाइट पर भी प्रदर्शित किया जाता है। जिन बच्चों को कोई विषय समझने में दिक्कत होती है उन पर खास ध्यान दिया जाता है। अध्यापकों को अगर कोई दिक्कत महसूस होती है तो वे वीडियो कॉलिंग के जरिए सीधे जिले के अधिकारियों से बात भी कर सकते हैं।

स्कूलों में पहल को कैसे क्रियान्वित किया जा रहा है इसे देखने के लिए अलग से अधिकारियों की नियुक्ति की गई है। ये अधिकारी जिला शिक्षा अधिकारी और कलेक्टर को सीधे रिपोर्ट करते हैं। जब बोर्ड एग्जाम में 40 दिन रह जाते हैं तो रिवीजन सत्र शुरू होता है जिसका नाम होता है 'मिशन 40 दिन'। इन सारे प्रयासों का परिणाम ये होता है कि पूरे प्रदेश में बोर्ड एग्जाम में 98.33 प्रतिशत लाकर टॉप करने वाला छात्र यज्ञेश सिंह चौहान जशपुर का पढ़ने वाला निकलता है।

हालांकि कलेक्टर प्रियंका शुक्ला की ये एकमात्र सफलता नहीं है। पिछले साल अगस्त में स्थानीय प्रशासन ने मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए बेकरी खोलने में मदद की थी। उस बेकरी का नाम बेटी जिंदाबाद बेकरी है। 20 लड़कियों ने इसकी शुरुआत की थी। प्रियंका शुक्ला कहती हैं, 'एक महिला कलेक्टर होने के नाते ये जिम्मेदारी आ जाती है कि जशपुर की हर लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए ही बेकरी की शुरुआत करवाई गई थी। ये लड़कियां बाकी तमाम लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गई हैं।'

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