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जिंदगी के हर खेल में हरफनमौला अनु से मिलें

अनु एक सफल एथलीट, उद्यमी, डॉक्टर, प्रोफेसर हैं

जिंदगी के हर खेल में हरफनमौला अनु से मिलें

Friday September 18, 2015 , 6 min Read

एक कहानीकार के रूप में मैं अपना काम पंसद करता हूं। पिछले समय में कई कहानियां दिल को छूके गयी हैं और यह कहानी उनमे से शीर्ष पर है।

आप उन्हें- एथलीट, उद्यमी, डॉक्टर, प्रोफेसर कह सकते हैं, इसके अलावा उनके कन्धों पर- बेटी, पत्नी और बहन के ‘टैग’ भी खूब सजते हैं। इन बड़े तगमों को कम शब्दों कहा जाए तो अनु वैद्यनाथन को- एक ‘वीमेन एचीवर’ और एक हरफनमौला कह सकते हैं।

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खिलाड़ी – अनु

अनु पहचान में तब आई जब वह भारत में ट्रेनिंग करते हुए ‘आयरनमैन ट्रायथलन’ पूरी करने वाली पहली महिला बनी। ट्रायथलन बहुत धैर्य वाला खेल है, जिसमे तीन खेल- 3.8 किमी तैराकी, 180 किमी बाइकिंग और 42.2 किमी की दौड़ शामिल हैं। अनु अपने खेल में बेहतर प्रदर्शन कर पहली भारतीय महिला बनी जिसने ‘हाफ-आयरनमैन वर्ल्ड चैम्पियनशिप के लिए’ ‘क्वालीफाई’ किया साथ ही वह अकेली एशियन भी थी जिन्होंने ‘अल्ट्रामैन डिस्टेंस इवेंट’ भी पूरा किया।

अनु की खेलों के प्रति रूचि बचपन से ही बढ़ गयी थी, वह बैंगलोर में अपने घर बसवेश्वरनगर से स्कूल मल्लेश्वरम तक सात किलोमीटर साइकिल से जाती थी। उनकी तैराकी का अभ्यास गर्मियों की छुट्टियों में तब हुआ, जब वह तमिलनाडु के एक गाँव में अपने पैतृक घर गयी। वहां वह घर के पास के हौज में तैरती थी। और उन्होंने दौड़ना कॉलेज में कम्प्यूटर साइंस पढ़ते हुए शुरू किया।

लेकिन उनकी उपलब्धियों का सबसे बेतरीन भाग यह है कि अनु हमेशा खुद को प्रेरित करती रही और अपनी रुचियों के अनुसार हर चीज़ करती रही। उनके ऊपर कभी भी ‘प्रदर्शन का दबाव’ नहीं रहा।

अनु कहती हैं “मेरा बचपन बिलकुल सामान्य था और मेरे माता-पिता बहुत मेहनती थे। मैं बचपन में पढ़ाकू थी लेकिन कभी मैंने श्रेणी की प्रवाह नहीं की। लेकिन मुझे अपनी पढ़ाई पर गर्व है क्योंकि मैंने अपने प्रतिभा को वहीँ पहचाना।” डॉक्टरेट हासिल करने के लिए इंजीनियरिंग को पढने के लिए चुनना और एथलिट बनना, बताता है कि अनु की कहानी विशुद्ध रूप से एक मुक्त इच्छाशक्ति और मजबूत मूल्यों वाली महिला की है। लेकिन ये बातें पड़ावों में हुई है और अनु साफ़ करती हैं कि वह कोई ‘सुपर वीमेन’ नहीं है। अनु बताती हैं “मैंने अपनी पीएचडी और खेल एक साथ पूरा किया। मुझे एक ही समय में कई चीज़ों में उत्कृष्ट होने के लिए पेशेवर नहीं बनाया गया था। किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट होने के लिए आपको उसमे जी-जान लगानी पड़ती है, जिस चीज़ पर आपका ध्यान केन्द्रित है उससे आपको कोई भी दूर नहीं कर सकता।” अनु मानती हैं कि वह कोई भी कार्य बहुत नियमबद्ध होकर करती हैं और यह उन्हें किसी भी कार्य में ज्यादा से ज्यादा उपलब्धि दर्ज करने में मदद करता है। “हर दिन मुझे पता होता है कि मुझे क्या करना है और मैं बिना किसी शिकायत के वह करती हूं। काम और उसे करने के तरीके को लेकर आपकी प्राथमिकताएं साफ़ होनी चाहिए।”

टाईमैक्स उनके साथ जुड़ा है और अनु इस तरह के निवेश पर गर्व करती है। वह बताती हैं “मैं उन्ही के साथ साझेदार बनती हूं जो कुछ मूल्य दे सकते हैं और कुछ ले सकते हैं, जिससे मैं दबाव महसूस नहीं करती।” अनु मानती हैं कि अगर आप व्यतिगत तौर पर कुछ करना चाहते तो आप रास्ता खोज लेते हैं और हमेशा आपको बाहरी सहयोग के लिए नहीं देखना चाहिए। अगर आप मेहनत से लगे हो तो फेम, पैसा, मदद बाद में अपने आप आएगी। “मेरे लिए वो पल गर्व के होते हैं जब युवा मुझे लिखते हैं कि मैं उनकी प्रेरणा हूं और मेरी कहानी से उन्हें मदद मिली है। यह बहुत बड़ी बात है।”

अनु ट्रायथलन को सिखाने के लिए केंद्र खोलने के जवाब में कहती हैं कि “मैं अपने काम को करके पहले से ही जागरूकता फैला रही हूं। मैं यह बात कह रही हूं कि अगर आप अपने काम पर ध्यान देते हैं तो कितना अंतर ला देते हैं। मैं यहाँ किसी सामाजिक क्रान्ति के लिए नहीं बैठी हूं, क्योंकि फिर आप अपने लिए हार चुन रहे हो।” उनकी इच्छा उन लोगों को चीज़ें उपलब्ध कराने की है, जो ट्रायथलन के लिए जागरूकता बढ़ाने और इसके लिए लोगों को तैयार करने के इच्छुक हैं।

उद्यमी अनु

अनु बैंगलोर स्थित बौद्धिक संपदा फर्म ‘PatNMarks’ की संस्थापक भी हैं। 2001 में इस फर्म की स्थापना करने वाली अनु कहती हैं कि “ज़िन्दगी अच्छी हैं लेकिन बाज़ार मुश्किल है। हमारी शुरूआती चुनौती लोगों को बौद्धिक संपदा के बारे में समझाना था लेकिन अब अविष्कारक समझदार और मेहनती हैं। 12 लोगों की टीम ‘PatNMarks’ के बैंगलोर, चेन्नई ओर ऑस्टिन में ऑफिस हैं।

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अनु कहती हैं कि खेल और PatNMarks में काम करने वाले नियम एक जैसे हैं। “मेरा खेल बार-बार दोहरायी जानी वाली ऐसी क्रिया है जिसमे अनुशासन का तत्व चाहिए जो ज्यादा जगहों पर नहीं मिलता। जैसे कि उद्यमिता में है आप तीन साल काम करो और फिर थोड़ी सी फडिंग आपको मिलती है। खेल अपनी ऊर्जा को मैनेज करने के बारे में हैं। यह आसान नहीं है इसलिए आप निरंतर अभ्यास करते रहते हैं।

अनु का बौद्धिक संपदा की ओर रुझान अपने माता-पिता की वजह से हुआ। अनु की माँ अलामेलु वैद्यनाथन ‘पेटेंट अटॉर्नी’ भारत सरकार में ‘सेकेण्ड रजिस्टरार’ थी। अनु मानती है कि उनकी माँ का मुश्किल हालातों में शिक्षा लेकर अच्छे मुकाम पर पहुंचना बहुत बड़ी बात थी।

अनु ‘PatNMarks’ में बिजनेस डेवलपमेंट और कस्टमर रिलेशन संभालती है। अनु अपने काम की मात्रा से ज्यादा गुणों को बनाये रखने पर ज्यादा भरोसा रखती है।

अनु !

इतनी उपलब्धियों के बाद भी अनु का व्यवहार बहुत सरल है। अनु कहती है “सुरक्षित राहें और महिलाओं का सम्मान देश पर किसी भी खेल और उद्यमिता से ज्यादा प्रभाव डालेगा। उद्यमिता को वही समझना चाहिए जो वह है। अगर आपके अंदर साहस है तो अच्छा उत्पाद बनाएं और फिर उससे लाभा बनाएं। अगर यह कार्य नहीं कर पाए तो आपके पास दूसरी योजना होनी चाहिए।”

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घर में अपना ज्यादतर समय पढने और खाने बनाने में देने वाली अनु सलाह देती हैं “हम जैसे माध्यम वर्ग के परिवार से आने वाले लोगों को अपनी रोटी की व्यवस्था पहले करनी चाहिए। आपको जिंदगी में जो चाहिए उसे आपको हासिल करना होगा।” वह आगे कहती हैं कि नकारात्मक सोच और नकारात्मक लोगों से दूर रहें। टीवी का शोर और नकारात्मकता मेरे घर से दूर रहती है।

यह कहानी अनु की माँ से बिना बात किये पूरी नहीं होती, जो अनु की प्रेरणा स्रोत रही है। उनकी माँ अलामेलु वैद्यनाथन अपनी बेटी पर गर्व करते हुए कहते हैं “अनु अपने पिता की तरह रोजाना व्यस्त रहती है, वो जिंदगी में क्या चाहती है और क्या नहीं चाहती इसको लेकर साफ़ है। मैं हमेशा चाहती थी कि उसके अन्दर महिलावाद बिना पुरुष को नीचा देखकर बना रहे। अनु ने जो हासिल किया है वह उसकी अपनी मेहनत है। मुझे खेल के बारे में कुछ पता नहीं है तो उसे कैसे गाईड कर सकती थी? मुझे कई साल लग गए यह समझने में कि एक खिलाड़ी के तौर पर उसकी उप्लाधियाँ कितनी बड़ी हैं।”