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अपनी जिद से टॉयलट बनवाने वाली बच्ची श्वेता दे रही सबको सीख

जागो इंडिया, मराठी श्वेता की तरह जागो!

अपनी जिद से टॉयलट बनवाने वाली बच्ची श्वेता दे रही सबको सीख

Thursday November 30, 2017 , 5 min Read

जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ललकार पर 'स्वच्छ भारत अभियान' चला है, और उनसे प्रशंसित अक्षय कुमार की फिल्म 'टॉयलेट : एक प्रेम कथा' आई है, घर में शौचालय बनवाने के विलक्षण किस्से उससे पहले से और बाद में भी सुर्खियों में आने लगे हैं।

श्वेता के घर पर तैयार हो रहा टॉयलट

श्वेता के घर पर तैयार हो रहा टॉयलट


यवतमाल के गांव इंद्रठांण की श्वेता रंगारी की उम्र अभी सिर्फ दस साल है, लेकिन उसके हठ ने बड़े-बड़ों की आंखें खोल दीं। श्वेता चौथी कक्षा में पढ़ती है। 

श्वेता के पिता की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह तुरंत टॉयलेट बनवा दे लेकिन बेटी की जिद रखने के लिए उसने भी कमर कस ली और जैसे-तैसे दस हजार रुपए का जुगाड़ कर घर में शौचालय बनवा दिया।

कोई महिला बकरियां बेचकर घर में बूढ़ी सास के लिए शौचालय बनवा रही है तो लड़के के घर में शौचालय न होने पर लड़कियां शादी से इनकार करने लगी हैं, कहीं इमामों के सामने मुस्लिम ग्रामीण ऐलान कर रहे हैं कि बिना शौचालय वाले घरों में वे अपनी बेटियां नहीं ब्याहेंगे, लेकिन इन सबसे हटकर है महाराष्ट्र की नन्ही श्वेता का कमाल, उसने पहले स्कूल से छुट्टी ली, फिर घर में शौचालय बनवाया, इसके बाद ही स्कूल गई। एक श्रीलाल शुक्ल का लोकप्रिय उपन्यास 'राग दरबारी' पढ़ते हुए उसमें गांव की औरतों पर एक चर्चित कमेंट आता है- 'धुंधलके में सड़क के किनारे गठरियों-सी रखी हुईं शौच के लिए कतार बांधकर बैठी औरतों, घूरे से उठती बदबू और कुत्तों के भौंकने की आवाज की पृष्ठभूमि में ही तो रंगनाथ शिवपालगंज में दाखिल होता है।'

इसी क्रम में एक उपन्यास में आगे एक तीखा व्यंग्य आता है- 'गाँव सुधार के धुरंधर विद्वान उधर शहर में बैठकर 'गाँव में शौचालयों की समस्या' पर गहन विचार कर रहे थे और वास्तव में 1937 से अब तक विचार-ही-विचार कर रहे थे।' यद्यपि व्यंग्य को दो धारों वाली तलवार कहा जाता है और शुक्ल पर बाद में आक्षेप भी लगे थे कि ये उन्होंने क्या लिख दिया। महिलाओं की मजबूरी का मजाक उड़ाया, लेकिन जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ललकार पर 'स्वच्छ भारत अभियान' चला है, और उनसे प्रशंसित अक्षय कुमार की फिल्म 'टॉयलेट : एक प्रेम कथा' आई है, घर में शौचालय बनवाने के विलक्षण किस्से उससे पहले से और बाद में भी सुर्खियों में आने लगे हैं। इस फिल्म पर मोदी स्वयं ट्वीट कर चुके हैं।

एक ऐसा ही ताजा वाकया उत्तर प्रदेश के गोण्डा निवासी मुन्नव्वर का है। उन्होंने अपने घर में शौचालय का निर्माण कराने के लिए अपनी नई मोटरसाइकिल ही बेच दी। ऐसी हजार बातें। आंध्र प्रदेश के जिला विजयानगरम में ग्रामीणों ने सौ घंटे के भीतर दस हजार शौचालय बनवा लेने का रिकॉर्ड बना दिया। इससे भी दो कदम आगे बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के मुबारकपुर कालागाँव में ग्रामीणों ने 17.5 लाख रुपये की सरकारी मदद लेने से इनकार करते हुए खुद पैसे जोड़-जुटा कर सार्वजनिक शौचालय बनवा लिया। कानपुर देहात (उ.प्र.) के गांव अनंतापुर की चंदाना ने बकरियां बेचकर अपनी बूढ़ी सास के लिए शौचालय बनवाया।

और तो और, प्रशासनिक अधिकारी भी गांवों में घरेलू शौचायल बनवाने की दिशा में अनोखे प्रयोग करने लगे। जैसलमेर (राजस्थान) के बाड़मेर में कलेक्टर ने घोषणा कर दी कि जो ग्रामीण घर में शौचालय बनवाने की पहल करेगा, उसे कलेक्टर के साथ कॉफी पीने का अवसर मिलेगा। सासाराम (बिहार) की फूल कुमारी ने घर में शौचालय बनवाने के लिए अपना मंगलसूत्र गिरवी रख दिया। लखनऊ (उ.प्र.) की नेहा ने यह कहकर शादी रचाने से मना कर दिया कि दूल्हे के घर में शौचालय नहीं है। हरियाणा में मेवात जिले गाँव तिरवाड़ा में जुटे सवा सौ गांवों के मुस्लिमों ने इमामो के सामने अपना फरमान सुना दिया कि जिस लड़के के घर में शौचालय नहीं होगा, उससे वे अपनी बेटियां नहीं ब्याहेंगे। इसी तरह छत्तीसगढ़ के गांव देवभोग में पन्ड्रा माली समुदाय ने ऐलान कर दिया कि शादी तभी तय होगी, जब लड़के वाले पहले अपने घर में शौचालय होने की लड़की वालों को फोटो दिखा देंगे।

मोदी ने भले सत्ता में आने के बाद स्वच्छता अभियान की टेर लगाई हो, कांग्रेस सरकार के जमाने में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री जयराम रमेश देश के दो लाख 40 हजार ग्राम पंचायतों को दस साल के भीतर स्वच्छ बनाने के लिए निर्मल भारत अभियान चलवा रहे थे, जिसकी हवा निकल कर रह गई। बहरहाल, चलते-चलाते शौचालय पर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश की तरह एक सबसे काबिले तारीफ वाकया मुंबई (महाराष्ट्र) का। यवतमाल के गांव इंद्रठांण की श्वेता रंगारी की उम्र अभी सिर्फ दस साल है, लेकिन उसके हठ ने बड़े-बड़ों की आंखें खोल दीं। श्वेता चौथी कक्षा में पढ़ती है। स्कूल में एक दिन स्वच्छता अभियान पर बच्चों से लिखित सवाल-जवाब किए जा रहे थे। प्रश्नपत्र श्वेता के हाथ में आया तो उसका ध्यान एक सवाल पर अटक गया। उसमें पूछे गए प्रश्न का आशय था कि उसके घर में शौचालय है कि नहीं? चूंकि उसके घर में शौचालय नहीं था, इसलिए वह इस प्रश्न का क्या उत्तर देती, सो उसने वह प्रश्न अनुत्तरित छोड़ दिया।

इसके बाद तो श्वेता रंगारी ने तुरंत ठान लिया कि अब वह लिखकर नहीं, करके दिखाएगी। उसने अपने टीचर भूषण तम्बाखे से ती दिन की छुट्टी ले ली। घर पहुंचते ही सारा वाकया अपने पिता को कह सुनाया और शौचालय बनवाने का हठ कर बैठी। उसने पिता के सामने शर्त रख दी कि जब तक घर में शौचालय नहीं बनेगा, वह स्कूल नहीं जाएगी। उसने तीन दिन की छुट्टी ले ली है, और इन तीन दिनों के अंदर ही घर में शौचालय बन जाना चाहिए। यद्यपि पिता की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह तुरंत टॉयलेट बनवा दे लेकिन बेटी की जिद रखने के लिए उसने भी कमर कस ली और जैसे-तैसे दस हजार रुपए का जुगाड़ कर घर में शौचालय बनवा दिया।

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