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यूरोप में पड़ सकता है भयानक सूखा: स्टडी

यूरोपियन कमीशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोप कम से कम 500 वर्षों में अपने सबसे खराब सूखे का सामना कर रहा है जिसकी वजह से बिजली उत्पादन और कृषि उत्पादन पर बड़ा असर पड़ सकता है.

यूरोप में पड़ सकता है भयानक सूखा: स्टडी

Wednesday August 24, 2022 , 3 min Read

जलवायु परिवर्तन का असर अब यूरोप में भी दीखने लगा है. फ्रांस और स्पेन के जंगलों में लगी आग की वजह से सूखे की स्थिति पैदा हो रही है. वहीं बारिश से भीगा रहने वाले इंग्लैंड में तापमान लगातार रिकॉर्ड तोड़ रहा है. पिछले महीने ही इंग्लैंड में इतिहास का सबसे ज्यादा तापमान (जबसे तापमान दर्ज करना शुरू किया गया) रिकॉर्ड किया गया था.


यूरोपियन कमीशन (ईसी) के जॉइंट रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार यूनाइटेड किंगडम का पूरा भूमिगत क्षेत्र सूखे की चपेट में है. यहां की सरकार ने इतिहास में पहली बार आधिकारिक तौर पर सूखे से गुजरने का एलान किया. इससे पहले फ्रांस और स्पेन के नेताओं ने भी कहा कि उनका देश अब तक की सबसे खतरनाक सूखे की स्थिति से गुजर रहा है. 


मौजूदा समय में यूरोप का 10 फीसदी हिस्सा हाई अलर्ट पर है. 


इस साल की शुरुआत से ही यूरोप में सूखे की स्थिति पैदा होने लगी थी. बारिश की कमी की वजह से जमीन में पानी भी काफी निचले स्तर पर चला गया है. पेड़-पौधे भी जमीन से पानी नहीं ले पा रहे और इनका सूखना जारी है. इसके बाद सर्दियों और वसंत के मौसम में पूरे महाद्वीप के ऊपर वायुमंडल में पानी की करीब 19 फीसदी कमी देखी गई.


इटली का पो नदी घाटी, जिसे देश के लिए सबसे अहम पानी का स्रोत माना जाता है, बुरी तरह प्रभावित हुई है. इसके चलते पांच क्षेत्रों में सूखे का आपात घोषित किया गया और लोगों के पानी के इस्तेमाल पर भी पाबंदियां लगाई गई हैं. स्पेन का आइबेरियन प्रायद्वीप के जल भंडार भी 10 साल के औसत से 31 फीसदी निचले स्तर पर हैं.


जलवायु परिवर्तन से फसल के नुकसान और सूखे की बात करें तो पिछले 50 वर्षों में यह तीन गुना हो गया है. रोमानिया, पोलैंड, स्लोवेनिया और क्रोएशिया में पानी की कमी की वजह से इस बार फसलों की पैदावार कम रहने के आसार हैं. जॉइंट रिसर्च सेंटर के मुताबिक, इन देशों में पानी और ऊर्जा संरक्षण के आपात कदम उठाने जरूरी होंगे.


ब्रिटेन और यूरोप के जलस्रोतों में पानी की कमी का असर अब इन देशों की ऊर्जा उत्पादन क्षमता पर भी दिखने लगा है. हाइड्रोपावर क्षेत्र में इस वक्त ऊर्जा उत्पादन 20 फीसदी तक नीचे गिरा है. उधर परमाणु संयंत्रों से भी ऊर्जा उत्पादन काफी कम हो गया है, क्योंकि इन प्लांट्स को ठंडा रखने के लिए नदी के पानी की जरूरत होती है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच जब ब्रिटेन-यूरोप खुद ऊर्जा की पैदावार बढ़ाकर आत्मनिर्भर होने की कोशिश में हैं, ठीक उसी वक्त पानी की कमी उसके इरादों पर पानी फेर सकता है.