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Wings of Fire: पॉजिटिव थिंकिंग और कलाम की सफलता का कनेक्शन बताती ये किताब

विंग्स ऑफ फायर एपीजे अब्दुल कलाम की ऑटोबायोग्राफी है जिसे उन्होंने अरुण तिवारी के साथ मिलकर लिखा है. इस किताब में कलाम के राष्ट्रपति बनने से पहले उनकी जिंदगी के बारे में चीजें लिखी गई हैं.

Wings of Fire: पॉजिटिव थिंकिंग और कलाम की सफलता का कनेक्शन बताती ये किताब

Saturday October 15, 2022 , 6 min Read

एपीजे अब्दुल कलाम भारत के एक जाने माने वैज्ञानिक होने के साथ भारत के 11वें राष्ट्रपति भी थे. उन्हें  तीन उच्च नागरिक अवॉर्ड- पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत रत्न से भी नवाजा गया है. विंग्स ऑफ फायर एपीजे अब्दुल कलाम की ऑटोबायोग्राफी है जिसे उन्होंने अरुण तिवारी के साथ मिलकर लिखा है. इस किताब में कलाम के राष्ट्रपति बनने से पहले उनकी जिंदगी के बारे में चीजें लिखी गई हैं. इस किताब के आने के बाद कलाम की एक ऑटोबायोग्राफी छपी जिसकी नाम था ‘माई जर्नीः ट्रांसफॉर्मिंग ड्रीम्स इंटू एक्शंस’. कलाम को एक साधारण, धर्मनिरपेक्ष और प्रेरणा देने वाले शख्स का दर्जा दिया जाता है.

क्या है किताब में?

विंग्स ऑफ फायर में एपीजे अब्दुल कलाम की शुरुआती जिंदगी, इंडियन स्पेस रिसर्च और मिसाइल प्रोग्राम में उन्होंने जो काम किए उनका जिक्र हुआ है. ये एक ऐसे लड़के की कहानी है जो बहुत सीधे-सरल परिवार से आता है और इंडियन स्पेस रिसर्च/इंडियन मिसाइल प्रोग्राम्स में एक बहुत हिस्सा बनता है और आगे जाकर देश का राष्ट्रपति भी बनता है.

इस किताब को भारत में काफी लोकप्रियता मिली है और इसका कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. किताब पूरे समय पाठक को बांधे रखती है. अंत में ज्यादातर उनके स्पेस रिसर्च और मिसाइल प्रोजेक्ट्स के बारे में काफी टेक्निकल टर्म्स के साथ जानकारी दी गई है. इसलिए अंत थोड़ा उबाउ लग सकता है, लेकिन जिन लोगों को स्पेस प्रोग्राम्स में दिलचस्पी है उनके लिए ये आखिरी हिस्सा भी उतना ही दिलचस्प होगा जितनी की पूरी किताब.

शुरुआत के चैप्टर्स में हमारे देश की 1930 से लेकर 1950 के दौरान की घटी अलग-अलग परिस्थितियों के बारे में बताया गया है. कलाम की पैदाइश रामेश्वरम में हुई थी. किताब में बताया गया है कि विभाजन से पहले कैसे अलग-अलग धर्म के लोग आपस में मिलकर रहते थे.

मशहूर शिव मंदिर, जो आज रामेश्वरम मंदिर के नाम से मशहूर है और श्रद्धालुओं के लिए इतना पवित्र स्थान रखता है वो मंदिर कलाम के घर से 10 मिनट की दूरी पर था. जिस इलाके में कलाम रहते थे वहां ज्यादातर मुस्लिम परिवार थे और गिने चुने हिंदू परिवार. कहीं भी किसी के भी बीच किसी तरह का सांप्रदायिक मनमुटाव नहीं था.

जब टीचर ने पीछे बैठने को कह दिया

कलाम अपने बचपन की कहानियों का जिक्र करते हुए लिखते हैं, मैं रामेश्वरम एलीमेंट्री स्कूल में कक्षा 5 में था और हमें पढ़ाने एक नए टीचर आए. मैं एक टोपी पहनता था जो अक्सर मुस्लिम समुदाय के लोग पहनते हैं. मैं हमेशा ही सबसे आगे की पंक्ति में रामानंद शास्त्री के बगल में बैठता था, जो एक पवित्र धागा (जनेऊ) पहनता था. नए टीचर को एक हिंदू पुजारी के बेटे का मुस्लिम लड़के के बगल में बैठना बिल्कुल हजम नहीं हुआ. उन्होंने मुझे पीछे की बेंच पर जाकर बैठने को कह दिया. मुझे और मेरे दोस्त रामानंद दोनों को बुरा लगा. मुझे पीछे बैठाए जाने की वजह से मेरा दोस्त रामानंद रोने लगा. उसे रोता देख मुझे भी बुरा लगा. स्कूल के बाद हम दोनों घर गए और अपने अपने माता-पिता को इस वाकये के बारे में बताया.

लक्ष्मण शास्त्री ने उस टीचर को बुलाया और हमारे सामने ही कहा कि उन्हें स्कूल के मासूम के बच्चों के दिमाग में सामाजिक भेदभाव को और सांप्रदायिक नफरत का जहर नहीं घोलना चाहिए. उन्होंने टीचर से कहा कि या तो वो माफी मांगें या फिर स्कूल और ये जगह ही छोड़ दें. टीचर ने आखिरकार अपने बर्ताव के लिए माफी मांगी.

सिवानंद स्वामी से मुलाकात का असर

कलाम शुरुआत के दिनों में एयर फोर्स ऑफिसर बनना चाहते थे लेकिन वो इंटरव्यू नहीं पार कर सके. इस असफलता के बाद उनकी मुलाकात स्वामी सिवानंद से हुई, जहां उन्होंने कलाम से कुछ ऐसा कहा जो हर किसी को जरूर पढ़ना चाहिए. 

सिवानंद ने कहा, ‘अपनी किस्मत को स्वीकार करो और जिंदगी में जो भी उसका खुले दिल से स्वागत करते रहो. तुम एयर फोर्स पायलट बनने के लिए नहीं बने हो. तुम इस धरती पर क्या बनने के लिए आए हो ये अभी नहीं समझ आएगा मगर ये पहले से तय है. इस असफलता को भूल जाओ क्योंकि ये तुम्हें उस रास्ते पर ले जाने के लिए जरूरी था जिसके लिए तुम बने हो. जिंदगी में अपने मकसद को ढूंढो, ढूंढो कि किस चीज से तुम्हें सच में खुशी मिलती है. सब भगवान पर छोड़ दो.’

ADE के साथ करियर की शुरुआत

किताब बताती है कि कैसे कलाम ने एरोनॉटिकल डिवेलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट के साथ अपना करियर शुरू किया और कैसे उन्हें एक होवरक्राफ्ट के डिजाइन टीम का हिस्सा बनाया गया. बाद में उन्होंने इंडियन स्पेस रिसर्च को जॉइन किया. 1963 में कलाम को साउंडिंग रॉकेट लॉन्चिंग टेक्निक्स पर ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए मैरिलैंड(यूएसए) जाने का मौका मिला. वहां उन्हें एक पेंटिंग दिखाई दी जिसमें ब्रिटिश लोगों के खिलाफ टीपू सुल्तान द्वार बनाए गए रॉकेट की फोटो थी.

कलाम लिखते हैं, मुझे ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि टीप सुल्तान के जिस योगदान को उनके देश ने भुला दिया उसे दूसरे देश ने सजा कर रखा हुआ है. मुझे ये देखकर खुशी हुई की NASA ने एक भारतीय को युद्ध में इस्तेमाल होने वाले रॉकेट का हीरो बनाकर अपनी दीवारों पर जगह दी गई है.

किताब में इंडिया के सैटेलाइट और मिसालइ प्रोग्राम( SLV-3, Prithvi, Agni, Thrisul, Akash, Nag) के टेक्निकल डिटेल्स के बारे में जानकारी दी गई है. जैसा कि ऊपर भी कहा गया है जिन लोगों को स्पेस और उससे जुड़ी टेक्नोलॉजी में दिलचस्पी है उन्हें ये हिस्सा अच्छा लगेगा. लेकिन जिन लोगों ने कलाम को जानने समझने, उनकी सिद्धांतों, विचारों को समझने के लिए ये किताब खरीदी है उन्हें उदासी हो सकती है.

स्पेस और मिसाइल प्रोग्राम्स काफी जटिल विषय हैं और उन्हें मैनेज करना और भी चुनौती भरा है. किताब कलाम के द्वारा अपनाई गई पार्टिसिपेटरी मैनेजमेंट टेक्निक के बारे में जरूर थोड़ी सी झलक देती है, मगर ज्यादा डिटेल नहीं दी गई है. विंग्स ऑफ फायर कलाम की निजी जिंदगी के बारे में बहुत मामूली सी जानकारी देती है, जो एक ऑटोबायोग्राफी होने के नाते नाउम्मीद करती है. मिसाल के तौर पर हमें ये नहीं मालूम पड़ा कि उन्होंने शादी क्यों नहीं की या फिर स्पेस रिसर्च के अलावा वो और क्या करते थे. उनकी दिलचस्पी किसमें थी.

इंडियन स्पेस के दूसरे शख्सियत

विंग्स ऑफ फायर के जरिए हमें उन लोगों को जानने का मौका मिलता है जिन्होंने इंडियन स्पेस रिसर्च में काम किया जैसे- विक्रम साराभाई और डॉक्टर ब्रह्म प्रकाश. किताब में करीबन 24 तस्वीरें भी दी गई हैं. ये तस्वीरें देख लेने भर से ही लगता है कि किताब की पूरी कीमत वसूल हो गई.

पूरी किताब को पढ़ने के बाद एक बार पूरी तरह उभर कर आती है वो है कलाम की पॉजिटिव थिंकिंग. उन्होंने अलग अलग संगठनों में कई उच्च स्तरीय पद संभाले, लेकिन किताब में शायद ही उन्होंने किसी भी नेता या नौकरशाहों की कामचोरी या भ्रष्टाचार का जिक्र किया हो. कुल मिलाकर ये कहा  जा सकता है कि उनके चारों तरफ भी निगेटिव चीजें थी मगर उन्होंने उन चीजों को दरकिनार करने का फैसला किया और उनकी इसी आदत को उनकी सफलता का श्रेय दिया जा सकता है. किताब इंडिया में उनकी लोकप्रियता भी बयां करती है. 


Edited by Upasana