Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

लाखों का पैकेज छोड़ जैविक खेती से खुशहाल हुए कपल विवेक, वृंदा शाह

लाखों का पैकेज छोड़ जैविक खेती से खुशहाल हुए कपल विवेक, वृंदा शाह

Wednesday August 14, 2019 , 4 min Read

एक कहावत किसानों को सांसत में डाले हुए है कि दादा कहें, बस सरसों लादा। कहावत ये भी कि लीक छोड़ तीनो चलें शायर, सिंह, सपूत। सिलिकॉन वैली की लाखों के पैकेज वाली नौकरी छोड़ गुजरात लौटे ऐसे ही सपूत कपल विवेक शाह, वृंदा शाह ने लीक छोड़कर अपनी जैविक खेती से पूरे देश को अचंभित कर दिया है। 


organic


जैविक (ऑर्गेनिक) खेती अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा में नौकरियां करने गए करोड़ों की सैलरी पैकेज वाले बड़े-बड़े टक्नोक्रेट तक को भारत लौटने के लिए विवश कर रही है। ऐसे ही गुजराती मूल (नाडियाड) के एक कपल विवेश शाह और वृंदा शाह भी हैं, जिन्होंने अपनी खेती के नए प्रयोगों से कृषि वैज्ञानिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और कृषि व्यवसाय के जानकारों को भी हैरत में डाल दिया है। दरअसल, जैविक कृषि एक ऐसी सदाबहार विधि है, जिसके गोबर की खाद कम्पोस्ट, हरी खाद, जीवाणु कल्चर, जैविक खाद और बायो एजेंट जैसे क्राईसोपा आदि आधुनिक प्रयोगों ने भूमि की उर्वरा सुरक्षित रखने के साथ ही कृषि लागत और उत्पादन दोनो को अकूत कमाई वाले पेशे में परिवर्तित कर दिया है। साथ ही, पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनो के लिए मुफीद होने के कारण यह एक नई हरित क्रांति की तरह तेजी से भारतीय कृषि में फैलती जा रही है। कम लागत, भारी मुनाफे के कारण इससे पढ़े-लिखे किसान और कंज्यूमर दोनों खुशहाल हो रहे हैं। 


सिलिकॉन वैली (अमेरिका) में अपनी लाखों के सैलरी पैकेज वाली की नौकरी और अलीशान रिहायश को छोड़कर गुजरात लौट आए युवा शाह दंपति कृषि ही नहीं, पर्यावरण को भी एक बड़ी चुनौती मानते हुए नाडियाड राजमार्ग पर स्थित अपने 10 एकड़ खेत (जैविक कृषि फॉर्म) में कई तरह की गेहूं, केला, आलू, जामुन, बाजरा, पपीता, धनिया, बैंगन आदि ऑर्गेनिक फसलें पैदा कर रहे हैं।


शाह दंपति के स्टार्टअप की दास्तान यही तक खत्म नहीं हो जाती है। वे जब अमेरिका से नाडियाड लौटे तो सबसे पहले उन्होंने फलों और सब्जियों के अलावा केले के चिप्स बनाने का फार्मकल्चर में डेढ़ महीने का कोर्स किया। अपने खेत में तालाब बनवाए। पानी साफ करने वाले विशेष तरह के पौधे उगाए। बीस हजार लीटर से अधिक क्षमता वाले वर्षा जल संचयन संयंत्र का इंतजाम किया, जिससे वह तीन साल तक अपनी फसलों की सिंचाई कर सकते हैं। खेती के दुश्मन कीटों से निपटने के लिए इंटरक्रॉपिंग और मल्टी-क्रॉपिंग को विकसित किया। इतना ही नहीं, वे किचन गार्डेनिंग और ऑर्गेनिक खेती पर सेमिनार कर अन्य पढ़े-लिखे युवाओं को भी इस नई तरह की कृषि व्यवस्थाओं के लिए ट्रेंड कर रहे हैं। उनकी तो यहां तक योजना है कि खेत में तालाब की खुदाई निकली अपनी ही मिट्टी, गाय के गोबर और पत्थरों से एक ऐसा घर बनाएंगे, जो पूरी तरह प्राकृतिक होगा।





आज ये युवा शाह दंपति अपने फॉर्म पर केले के ऐसे चिप्स का भी प्रॉडक्शन करने लगे हैं, जिसमें सिर्फ जैविक तेल का प्रयोग होता है। इसीलिए उसकी मॉर्केट में खूब डिमांड है। उनकी इस तरह की एग्रीकल्चर स्ट्रेटजी आम भारतीय किसानों को भी गंभीरता से समझने की जरूरत है। मसलन, वह अपने खेत में पैदा हो रहा केला सीधे मंडी में बेच आने की बजाय अपना दिमाग इस बात लगा रहे हैं कि केले से कौन-कौन से अन्य प्रॉडक्ट तैयार किए जा सकते हैं।


इससे हो ये रहा है कि चालीस-पचास रुपए दर्जन बिकने वाला उनका केला चिप्स के रूप में बाजार में पहुंचकर उनकी कमाई को सीधे-सीधे सैकड़ों की कीमत में तब्दील कर दे रहा है। उनका रेनवॉटर हार्वेस्टिंग प्लांट का प्रयोग खेती के लिए सबसे जरूरी सिंचाई की जरूरत से निश्चित कर दे रहा है। खेत से निकलने वाले कचरे से अपनी खाद तैयार कर ले रहे हैं। उनकी तुलसी और नींबू घास (लेमनग्रास) भी उगाने की कीट नाशक इंटरक्रॉपिंग और मल्टी-क्रॉपिंग पद्धति उनकी फसलों को हर तरह के खतरे से साफ साफ सुरक्षित कर दे रही है। इस युवा शाह दंपति ने अपनी फल-सब्जी-फसलों का चयन भी बड़ी दूरदर्शिता के साथ किया है। 


अब इतनी तरह की सावधानियों के साथ खेती करने वाला कोई किसान भला कैसे घाटे में रह सकता है। ज्यादातर भारतीय किसान खेती में इसी तरह की सावधानियों से बेखबर रहने के कारण लगातार घाटे से कंगाली में माथा पीटते आ रहे हैं। अपने सिर्फ डेढ़ एकड़ खेत में इसी तरह की अनार आदि की उन्नत जैविक कृषि से सीकर (राजस्थान) के किसान रामकरण और उनकी पत्नी संतोष देवी सालाना 13 लाख रुपए की कमाई कर ले रहे हैं। बेंगलुरू (कर्नाटक) की गीतांजलि राजामणि पार्टनरशिप में कृषि स्टार्टअप कंपनी 'फार्मिजन' में मोबाइल एप के सहारे अपने तीन हजार ग्राहकों के बीच अपना सालाना टर्नओवर 8.40 करोड़ रुपए तक पहुंचा चुकी हैं। अब तो उनकी कंपनी बेंगलुरु से निकलकर हैदराबाद और सूरत में भी जैविक खेती करने लगी है।