लाखों का बिजनेस छोड़ गरीबों की सेवा करने नंगे पांव निकल पड़े अजय ओली
"अजय ओली एकला चलो के अंदाज में इसी भयावहता के खिलाफ पांवों में बिना कोई जूता-चप्पल डाले पैदल पूरे देश को जगाने निकल पड़े हैं। खास बात ये है कि ओली की नजर सबसे पहले देश के फटेहाल बच्चों पर है।"
सालाना 43 लाख के टर्नओवर का बिजनेस छोड़कर पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) के अजय ओली गरीबी के खिलाफ लोगों को जगाने के लिए नंगे पांव पैदल पूरे देश में घूम रहे हैं। अब तक वह सात राज्यों में पहुंच चुके हैं। उनकी कोशिश से हजारों बच्चों को भोजन-चिकित्सा के साथ निःशुल्क शिक्षा मिल रही है।
महंगाई, बेरोजगारी आदि की चर्चाएं तो कभी-कभार हो भी जाती हैं, आज के जमाने में अब गरीबी पर कहां कोई चर्चा करता है। हां, कोई भूख से तड़प-तड़प कर मर जाए, तब भले मीडिया की सुर्खियां बन जाता है। ऐसे वक्त में पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) के उत्साही युवा अजय ओली पिछले कुछ दिनो से पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं। इसकी वजह साफ है कि भारत 2020 में भले विकसित देशों की सूची में नामजद हो जाए, आंकड़ों के ताने-बाने में 10 पर्सेंट की ग्रोथ रेट हासिल कर ले, चीन को भी पीछे छोड़ दे, प्रति व्यक्ति आय बढ़कर दोगुनी हो जाए मगर दूसरी तरफ देश में गरीबों की कुल संख्या 42 करोड़ तक पहुंच चुकी है।
बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और राजस्थान में तो गरीबों की बाढ़ आई हुई है। यहां के ज्यादातर परिवार रोजाना बीस रुपए से भी कम आमदनी पर दिन गुजार करना रहे हैं। देश के आठ राज्यों में तो हालात इथोपिया और तंजानिया जैसी है। वहां के ज्यादातर लोगों को न तो हेल्थ की सुविधा प्राप्त है, न एजुकेशन की। बुनियादी सुविधाओं की बात छोड़िए लोगों को प्यास बुझाने के लिए साफ पानी तक नहीं मिल पा रहा है। एक तरफ देश में अरबपति और करोड़पति बढ़ते जा रहे हैं, दूसरी तरफ गरीबों की संख्या दिन-दूनी, रात चौगुनी गति से भयावह हो रही है।
अजय ओली एकला चलो के अंदाज में इसी भयावहता के खिलाफ पांवों में बिना कोई जूता-चप्पल डाले पैदल पूरे देश को जगाने निकल पड़े हैं। खास बात ये है कि ओली की नजर सबसे पहले देश के फटेहाल बच्चों पर है। अजय ओली कहते हैं कि अपनी खुशी के लिए तो हर कोई जिता है, दूसरों की खुशी के लिए जीने की सारी उम्मीदें ठंडी पड़ती जा रही हैं। वह अपने देश को चाइल्ड लेबर और चाइल्ड बैगिंग से फ्री करना चाहते हैं। ओली ने 29 सितंबर 2015 को नंगे पैर पैदल यात्रा के साथ इस मुहिम की शुरुआत की।
अब तक वह पैदल 12,500 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। वैसे लोकल कन्वेंस और पैदल मिलाकर अब तक वह 81,000 किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं। उन्होंने सबसे पहले अपने पिथौरागढ़ से इस यात्रा की शुरुआत की। इसके बाद पूरा उत्तराखंड, फिर यूपी, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, बिहार आदि राज्यों में लोगों को गरीबी के खिलाफ आंदोलित कर चुके हैं।
अजय ओली बताते हैं कि वह मोटिवेशनल काउंसलर भी हैं। साथ ही सोशल वेल्फेयर में अपनी पीएचडी कंप्लीट कर रहे हैं। यात्रा शुरू करने से पहले वह 2015 तक वह इवेंट मैनेजमेंट का बिजनेस कर रहे थे। इस दौरान ही गरीब बच्चों को लेकर उनकी चिंता बढ़ती गई। देश के बच्चों को अच्छी दुनिया देना सरकार ही नहीं, घर-समाज का भी काम है। ऐसे भयावह दौर में हम सबके अवेयर होने की जरूरत है।
अजय एक दिन में 40 किलोमीटर यात्रा करते हैं। यात्रा के दौरान वह पब्लिक डीलिंग भी करते हैं। चाइल्ड लेबर और चाइल्ड बैगिंग को खत्म करने के लिए सबको प्रेरित करते हैं। वह एक दिन में लगभग सात सौ लोगों से मुलाकात कर लेते हैं। वह इस दौरान स्कूल-कॉलेजों में भी जाते हैं। छात्रों को शपथ दिलाते हैं कि वह किसी को भीख न दें। उनका मानना है कि भीख मिलने पर बच्चा बड़ा होकर भिखारी बन जाता है। बच्चों को भीख नहीं एजुकेशन देने की जरूरत है ताकि वह देश का अच्छा नागरिक बन सके। वह अब तक चौदह हजार छात्रों के सामने भीख की बजाए एजुकेशन पर जोर दे चुके हैं।
'घनश्याम ओली चाइल्ड वेलफेयर' से जुड़े अजय राइटर भी हैं। वह अब तक सौ से अधिक आर्टिकल लिख चुके हैं। वह अपनी गरीबी विरोधी पदयात्रा पर एक पुस्तक भी लिखना चाहते हैं। यात्रा के दौरान वह बच्चों को आत्मनिर्भरता के लिए तरह तरह की चीजें बनाना भी सिखाते हैं। साथ ही उनको निःशुल्क एजुकेट करते चलते हैं। आज तो वह छब्बीस वर्ष के हो चुके हैं, काफी वक्त पहले जब वह 22 वर्ष के थे, बच्चों को भिक्षावृत्ति करते देखना उनके ह्रदय को झकझोर गया। उसके बाद उन्होंने जूता चप्पल फेंककर उन असहाय बच्चों की तरह चलना शुरू कर दिया। उनकी कोशिशें रंग ला रही हैं।
अब तक तेरह हजार से अधिक बच्चो को विभिन्न शिक्षा केन्द्रों के माध्यम से निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है। साथ ही उनकी भोजन और चिकित्सा की भी जरूरतें पूरी की जा रही हैं। अजय कहते हैं कि बच्चों का भीख मांगना और श्रम करना कितना दुर्भाग्यपूर्ण होता है। स्कूल जाने की उम्र में बच्चे होटलों, ढाबों, दुकानों, घरों में श्रम कर अपने परिजनों के लिए पैसा जुटा रहे हैं। अगर समाज को बदलना है तो सबसे पहले हमे खुद में ही बदलाव लाना होगा।
अजय अब तक सात राज्यों की यात्रा कर चुके हैं। इस सफर पर चल पड़ने से पहले उनका इवेंट मैनेजमेंट का बिजनेस था, जिसका सालाना टर्नओवर 43 लाख रुपए था। लगातार पैदल चलने से खराब हुई हालत को देखकर कई बार लोग उन्हें पागल समझ लेते हैं। पंजाब में तो एक होटल मालिक ने उन्हे पागल समझ कमरा देने से मना कर दिया। और वहां से जाने को कह दिया। वह सप्ताह में तीन दिन सिर्फ अपने लिए काम करते हैं।
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