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लोकसभा चुनाव 2019: पहली बार वोट देने वाले युवाओं को 'अपनी सरकार' से हैं क्या उम्मीदें

2020 तक भारत, 29 वर्ष की औसत आयु वाली आबादी के साथ दुनिया का सबसे युवा देश बन जाएगा। कामगार वर्ग को देखते हुए यह भारत के लिए अपार संभावनाओं का दौर है।

सांकेतिक तस्वीर

रिपोर्ट्स के मुताबिक़, अगले एक साल में भारत की लगभग 64 प्रतिशत आबादी कामगार वर्ग के अंतर्गत होगी। 2027 तक भारत के पास दुनिया की सबसे अधिक कामगार आबादी हो सकती है। इन आंकड़ों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत का भविष्य पूरी तरह से युवा हाथों में हैं। 23 मई, 2019 को आम चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद, आइए जानते हैं कि इस युवा आबादी को अपनी नई सरकार के क्या उम्मीदे हैं। इस बार के आम चुनाव में 1 करोड़ 50 लाख लोगों ने पहली बार वोट दिया, जिनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच थी।


चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक़, 2019 के आम चुनाव में वोट देने वालों की संख्या सर्वाधिक रही और कुल 67.11 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया। 2014 में यह आंकड़ा 66.40 प्रतिशत तक था। इस युवा आबादी के समर्थन पर सभी की निगाह है। यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी देश में पहली वोट देने वाले इस युवा वर्ग से अधिक से अधिक संख्या में वोट डालने की अपील की थी। अब सवाल यह उठता है कि पहली बार किसी पार्टी या नेता को समर्थन देने वाले इस युवा वर्ग को अपनी सरकार से क्या उम्मीदे हैं?


बी. पैक (बेंगलुरु पॉलिटिकल ऐक्शन कमिटी) के मुताबिक़, बेंगलुरु अर्बन में इस बार वोटरों का प्रतिशत 54.2 रहा, जो कि 2014 के लोकसभा चुनावों के मुक़ाबले कम था, लेकिन इसके बावजूद इस दौरान वोटरों की संख्या में 4 लाख का इज़ाफ़ा दर्ज हुआ। एक और रोचक तथ्य यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में महिला वोटरों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है।


इसके अतिरिक्त एक और रोचक तथ्य यह है कि पश्चिम बंगाल में इस बार सर्वाधिक पहले बार वोट देने वाले लोगों की संख्या थी। रिपोर्ट्स का कहना है कि 20.6 लाख से ज़्यादा युवाओं ने पश्चिम बंगाल में मतदान किया और इनमें से ज़्यादातर 18-20 साल के आयु वर्ग में थे। पश्चिम बंगाल के बाद राजस्थान में पहली बार वोट देने वालों की आबादी सर्वाधिक थी। राजस्थान में इस बार 20.3 लाख लोगों ने पहली बार वोट दिया। इसके बाद उत्तर प्रदेश (16.7 लाख), मध्य प्रदेश (13.6 लाख) और महाराष्ट्र (11.9) का नंबर आता है। रोज़गार में कमी, महिला सुरक्षा, ग्रामीण विकास और एक व्यवस्थित शासन, इन मुद्दों पर युवाओं का विशेष ध्यान रहा।


डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 30 प्रतिशत युवा आबादी बेरोज़गार है और यहां तक कि वे स्कूल भी नहीं जाते। इन वजहों से ही इस बार के आम चुनाव में रोज़गार और उच्च शिक्षा के मुद्दे लगातार केंद्र में रहे। इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट का कहना है कि पिछले 12 सालों से उच्च शिक्षा के विभाग पर बजट का लगभग 1.47 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च किया जाता रहा है।


चुनाव पर युवाओं से पहले हुई बातचीत के दौरान योर स्टोरी ने पाया कि युवा पीढ़ी दूसरी बार सत्ता में आई मोदी सरकार से यह अपेक्षा रखती है कि हालिया शिक्षा व्यवस्था में बदलाव होना चाहिए। वे चाहते हैं कि सरकार शिक्षण संस्थानों को देश के अन्य संस्थानों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग स्थापित करने में मदद करे ताकि विद्यार्थियों के लिए रोज़गार के मौक़ों में इज़ाफ़ा हो सके।


इसके साथ-साथ देश का युवा चाहता है कि आगामी सरकार वित्तीय नीतियों के ज़रिए आर्थिक आधार पर मध्यम वर्ग से आने वाले विद्यार्थियों को छूट दे। साथ ही, यह आबादी लगातार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वक़ालत भी करती रही है। दुर्गापुर में बीटेक की पढ़ाई कर रहे एक छात्र बरनाक मुखर्जी का कहना है कि भारत को एक ऐसा देश बनना चाहिए, जहां पर योग्यता की क़ीमत हो और जहां पर शोध को तवज़्ज़ो मिले।


युवाओं के लिए गठित एक मीडिया संगठन 'युवा' ने 'इन यूथ' के साथ मिलकर एक गहन शोध किया, जिसमें 18-23 साल के युवाओं को शामिल किया गया। 'युवा' के को-फ़ाउंडर और सीईओ निखिल तनेजा ने बताया कि उनकी टीम 25 शहरों में 65 से ज़्यादा कॉलेजों में गई और तीन महीने के समय में हज़ारों युवाओं से बातचीत की।


निखिल का कहना है, "सभी बड़े राजनैतिक दलों के मेनिफ़ेस्टो में युवाओं को सिर्फ़ रोज़गार की मांग तक ही सीमित कर दिया गया, जबकि देश का युवा अन्य भी कई अहम मुद्दों में दखल चाहता है। हमें देश के युवा से संपर्क स्थापित करना होगा और उनकी सोच को अपने तरीक़ों की दिशा निर्धारित करने में शामिल करना होगा।"


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