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M Visvesvaraya - पिता के गुज़रने के बाद, काफ़ी मुश्किलों से की इंजीनियरिंग, इनके जन्मदिन पर मनाया जाता है Engineers Day

M Visvesvaraya - पिता के गुज़रने के बाद, काफ़ी मुश्किलों से की इंजीनियरिंग, इनके जन्मदिन पर मनाया जाता है Engineers Day

Thursday September 15, 2022 , 4 min Read

आज 15 सितम्बर के दिन पूरा देश Engineer’s Day मना रहा है.आज का दिन उन सभी इंजीनियर्स को समर्पित है जिन्होंने अपनी तकनीकी समझ से हमारे देश की विकास दर को एक नई गति प्रदान की. यह दिन देश के महान इंजीनियर और भारत रत्न(Bharat Ratna) से सम्मानित मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया(Mokshagundam Visvesvaraya) के अतुलनीय योगदान की याद दिलाता है। एम विश्वेश्वरैया ने राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया था, ऐसे में उनके जन्मदिन 15 सितंबर को देश भर में इंजीनियर्स डे मनाया जाता है। सिविल इंजीनियर(Civil Engineer) विश्वेश्वरैया ने आधुनिक भारत के बांधो, जलाशयों और जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। सरकार ने साल 1955 में इन्हें भारत रत्न(Bharat Ratna) से सम्मानित किया था। 

विश्वेश्वरैया को अलग-अलग उपाधियों से सम्मानित करते हैं. कोई सर एमवी कहता है तो कोई उन्हें आधुनिक भारत का विश्वकर्मा बुलाता है. उन्होंने कर्नाटक के मांड्या जिले में बने कृष्णराज सागर बांध(Krishnaraja Sagar Dam) के निर्माण का मुख्य योगदान दिया था, जिसके बाद उसके आस पास की बंजर ज़मीन उपजाऊ बन गयी. जिसके बाद उन्हें कर्नाटक का भागीरथ भी बुलाते हैं.

कौन थे विश्वेश्वरैया

भारत रत्न एम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1861 को मैसूर के कोलार जिले स्थित क्काबल्लापुर तालुक में एक तेलुगू परिवार में हुआ था. विश्वेश्वरैया के पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री था, जो संस्कृत के विद्वान थे. श्रीनिवास सिधान्त्वादी व्यक्ति थे, आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के बाद भी उन्होंने अपने बेटे को अच्छी शिक्षा और अच्छे आचरण देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बचपन से ही विश्वेश्वरैया को पिता से रामायण और महाभारत का ज्ञान मिला.

बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर खुद की पढ़ाई पूरी की

विश्वेश्वरैया की प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय में ही हुई. वे बचपन से ही पढाई में कुशल थे, इसलिए अपने शिक्षकों के हमेशा प्रिय रहे. सब कुछ अच्छा चल रहा था, मगर एक अनहोनी ने विश्वेश्वरैया की ज़िन्दगी को वीरान करदिया. वो महज़ 14 साल के ही थे, जब उनके पिता का देहांत हो गया. पिता के जाने के बाद परिवार की ज़िम्मेदारी विश्वेश्वरैया पर आ गई.  पढाई में विश्वेश्वरैया शुरू से ही अच्छे थे, जिसके चलते उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया, साथ ही साथ अपनी पढाई भी करते रहे.सन 1880 में बंगलौर के सेंट्रल कॉलेज से उन्होंने बी.ए. की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की.

छात्रवृति से इंजीनियरिंग की 

विश्वेश्वरैया इंजीनियरिंग करना चाहते थे, मगर आर्थिक रूप से सक्षम न होने के कारण उनका इंजीनियरिंग करना मुश्किल था. उनके कॉलेज के प्रिंसिपल भी यही चाहते थे. कॉलेज के प्रिंसिपल ने विश्वेश्वरैया को मैसूर के तत्कालीन दीवान रंगाचारलू से मिलवाया और विश्वेश्वरैया की इंजीनियरिंग की लगन को देखकर रंगाचारलू ने उनके लिए छात्रवृति(Scholarship) की व्यवस्था करदी. इसके बाद विश्वेश्वरैया ने पुणे के साइंस कॉलेज में प्रवेश लिया. उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग श्रेणी में समस्त कोलेगों के बीच सर्वोच्च अंक प्राप्त करते हुए 1883 में सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की.

विश्वेश्वरैया के अतुलनीय कार्य 

सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद विश्वेश्वरैया को बम्बई के लोक निर्माण विभाग में सहायक इंजीनियर पद पर सरकारी नौकरी मिल गई. उन्होंने डेक्कन में एक जटिल सिंचाई व्यवस्था को कार्यान्वित किया। संसाधनों और उच्च तकनीक के अभाव में भी उन्होंने कई परियोजनाओं को सफल बनाया। इनमें प्रमुख थे कृष्णराजसागर बांध(Krishnaraja Sagar Dam), भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय और बैंक ऑफ मैसूर। ये उपलब्धियां एमवी के कठिन प्रयास से ही संभव हो पाई।

1909 में उन्हें मैसूर राज्य का मुख्या अभियंता बनाया गया. मैसूर की कावेरी नदी अपनी बाढ़ के लिए दूर-दूर तक कुख्यात थी. उसकी बाढ़ के कारण प्रतिवर्ष सैकड़ों गाँव तबाह हो जाते थे. कावेरी पर बाँध बनाने के लिए काफी समय से प्रयत्न किए जा रहे थे, लेकिन ये काम शुरू भी नहीं ही पा रहा था, विश्वेश्वरैया ने इस योजना को अपने हांथों में लिया. उन्होंने ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए कृष्णाराज सागर बाँध का निर्माण कराया.1932 में यह बाँध बनकर तैयार हो गया.

मैसूर के दीवान

मैसूर राज्य में उनके योगदान को देखते हुए मैसूर के महाराजा ने उन्हें सन 1912 में राज्य का दीवान नियुक्त कर दिया। मैसूर के दीवान के रूप में उन्होंने राज्य के शैक्षिक और औद्योगिक विकास के लिए अथक प्रयएम विश्वेश्वरैया स्वेच्छा से 1918 में मैसूर के दीवान के रूप में सेवानिवृत्त हो गए। सेवानिवृत्ति के बाद भी वो सक्रिय रूप से कार्य कर रहे थे। राष्ट्र के लिए उनके अमूल्य योगदान को देखते हुए सन 1955 में भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। 

101 की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को विश्वेश्वरैया का निधन हो गया।