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मिलें इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देने वाले 56 वर्षीय किसान मनोज सोलंकी से

मनोज हर महीने करीब 50 से ज्यादा लोगों को प्राकृतिक खेती करने की नि:शुल्क ट्रेनिंग देते हैं। इसके अलावा, पशुपालन, हस्त कला और ग्राम उघोग से जुड़े 100 उत्पाद बनाने का हुनर भी लोगों को मुफ्त में सिखाते हैं।

मिलें इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देने वाले 56 वर्षीय किसान मनोज सोलंकी से

Friday March 04, 2022 , 3 min Read

इको-फ्रेंडली झोपड़ियों से लेकर जैविक खेती करने वाले मनोज सोलंकी की कहानी काफी रोचक और प्रेरणादायक है। 56 वर्षीय मनोज मूल रूप से कच्छ के कुकमा गांव के रहने वाले हैं। अपने गांव में टूरिज्म बढ़ाने और ग्रामीणों को रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य व प्रकृति से जुड़ने के लिए मनोज सोलंकी ने शहर से वापस आकर खेती को ही अपनी आजीविका बना लिया।

आरंभ में मनोज ने भी अन्य किसानों की तरह केमिकल फार्मिंग करते थे। लेकिन, फिर साल 2001 से उन्होंने जैविक खेती की राह अपनाई। इसके साथ ही मनोज सोलंकी ने एक ट्रस्ट बनाया, जिसके जरिए आज गांव वालों को सस्टेनेबल व्यवसाय के तरीके भी सीखा रहे हैं। अपने इन्हीं सब छोटे-छोटे प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने इको-टूरिज्म की भी शुरुआत कर दी है।

प्रशिक्षण के साथ दे रहे रोजगार

मनोज हर महीने करीब 50 से ज्यादा लोगों को प्राकृतिक खेती करने की नि:शुल्क ट्रेनिंग देते हैं। इसके अलावा, पशुपालन, हस्त कला और ग्राम उघोग से जुड़े 100 उत्पाद बनाने का हुनर भी लोगों को मुफ्त में सिखाते हैं। ट्रेनिंग लेने वालों को फार्म में आकर काम करने की ट्रेनिंग कराई जाती है।

मनोज सोलंकी

मनोज सोलंकी

अपने ट्रस्ट को सस्टेनेबल बनाने के लिए मनोज ने दो साल पहले एक बेहतरीन इको-टूरिज्म की शुरुआत की है, जिसके लिए उन्होंने गांव में ही छह मिट्टी के कमरे बनवाए हैं। इनकी खासियत यह है कि इन्हें भूकंप से भी कोई नुकसान नहीं पहुचंता और घर की दीवारें मोटी होने के कारण तापमान भी संतुलित रहता है।

मनोज कहते हैं, “खेती का दायरा बहुत बड़ा है। इसके साथ पशुपालन, गोबर से बने प्रोडक्ट्स और खाद आदि को जोड़ा जाए, तो गांव के लोगों को काम करने के लिए शहरों में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इसी सोच के साथ, मैंने साल 2010 में अपने ट्रस्ट की शुरुआत की थी। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसकी ट्रेनिंग दी जा सके। इसके जरिए मैं अपना अनुभव लोगों तक पहुंचाता हूँ।”

आर्गेनिक खेती और स्वदेशी मॉल

मनोज ने अपने फार्म के इस सस्टेनेबल मॉडल से गांव के कई लोगों को रोजगार भी दिया है। उन्होंने फार्म पर ही हस्त कला और ऑर्गेनिक सब्जियों जैसे प्रोडक्ट्स बेचने के लिए एक स्वदेसी मॉल भी बनाया है। फार्म में मौजूद उनका ऑफिस और ट्रेनिंग लेने आए लोगों के लिए बनी डोरमेन्ट्री आदि को भी कम से कम सीमेंट के उपयोग से बनाया गया है।

इको-टूरिज्म

LLB करने के बाद संभाल रहे थे पिता का बिजनेस

मीडिया रिपोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक, जब मनोज ने खेती किसानी की शुरुआत की थी, उस वक्त उन्हें इसके बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने बताया कि 25 साल पहले मुझे खेती की कोई जानकारी नहीं थीं। B.com और LLB की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैंने अपने पिता का बिजनेस संभालना शुरु कर दिया था। व्यापार करते-करते प्रकृति से जुड़कर कुछ व्यवसाय करने का ख्याल आया। ऐसे में मुझे सबसे अच्छा विकल्प खेती ही समझ आया। 


Edited by रविकांत पारीक