Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

नोबेल पाने वाली वह औरत, जिसकी कब्र पर प्रशंसक सिगरेटें चढ़ाया करते हैं

नोबेल सम्मान समारोह के अपने भाषण में शिंबोर्स्‍का ने कहा, “पिछले कुछ समय से मेरे सबसे प्रिय शब्द हैं– ‘मुझे नहीं मालूम”.

नोबेल पाने वाली वह औरत, जिसकी कब्र पर प्रशंसक सिगरेटें चढ़ाया करते हैं

Sunday August 21, 2022 , 4 min Read

विस्वावा शिम्बोर्स्का के जीवन पर बनी एक सुन्दर फिल्म है – ‘लाइफ इज़ बेयरेबल एट टाइम्स’. उसके एक दृश्य में आप शिम्बोर्स्का और उनके कुछ दोस्तों को ख़ाली की गयी दराज़ों से निकली विचित्र चीजों के ढेर में से वह मेडल ढूंढता देख सकते हैं, जो उन्हें 1996 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार के बतौर दिया गया था.

शिम्बोर्स्का को दराज़ों से मोहब्बत थी. “दराज़ें मानव सभ्यता की सबसे शानदार खोज हैं,” वे कहा करती थीं. ज़ाहिर है उनका घर इनसे भरा हुआ था. तमाम तरह की अटपटी चीज़ों से भरी तमाम तरह की दराज़ें. अखबारों-पत्रिकाओं से काटे गए हज़ारों फ़ोटोग्राफ़ और कटिंग्स, एक खिलौना सूअर जिसकी पूंछ को दबाने पर संगीत बजने लगता था, मिनिएचर दराज़ों वाली मिनिएचर आलमारियां, पनडुब्बी के आकार का सिगरेट लाइटर, दुनिया भर से इकठ्ठा की गईं चीज़ें और ढेर सारे पोस्टकार्ड.

बेहतरीन हास्यबोध, तर्क, विज्ञान, हाज़िरजवाबी और गहन अंतर्दृष्टि के लिए जानी जाने वाली शिम्बोर्स्का की कविता के भीतर इतना उजाला है कि आपको हर उस चीज़ के भीतर अर्थ नज़र आएगा, जिसे अमूमन रोज़मर्रा और साधारण कहकर अनदेखा कर दिया जाता है. वे कहती थीं, “जिसे हम कूड़ा-करकट समझ रहे होते हैं, वह कभी भी यह दिखावा नहीं करता कि वह खुद से बेहतर है.”

नोबेल देने वाली समिति ने उन्हें कविता का मोत्ज़ार्ट बताया तो एक इतालवी आलोचक ने कविता की ग्रेटा गार्बो. जब उन्हें साहित्य का उच्चतम सम्मान हासिल हुआ, वे तिहत्तर साल की हो चुकी थीं. दुनिया में बहुत से लोगों ने उनका नाम भी नहीं सुन रखा था. अलबत्ता उनके देश पोलैंड में उन्हें हर कोई जानता था और उन पर गर्व करता था.

मीडिया में उनके बारे में जो भी थोड़ा बहुत छपा था, उससे उनकी इमेज एक ऐसी दुबली अम्मा की थी, जिनके होंठों पर हमेशा सिगरेट लगी रहती थी और जो सार्वजनिक जीवन से बहुत दूर रहना पसंद करती थीं. उनकी सिगरेटें तो इस कदर विख्यात हुईं कि उनके मरने के बाद उनके प्रशंसक आज तक उनकी कब्र पर सिगरेटें चढ़ाया करते हैं.

जब शिम्बोर्स्का को साहित्य का नोबेल दिए जाने की घोषणा हुई, वे एक सुदूर कस्बे में छुट्टियां मना रही थीं. समाचार मिलते ही अखबार-टीवी वाले वहां पहुँच गए. वे सबसे बचते-बचाते और भी दूर किसी गांव में पहुंच गईं. उन्होंने टेलीफोन उठाना बंद कर दिया. साथी कवि और 1980 के नोबेल विजेता चेस्वाव मीवोश के अनेक बार टेलीफोन पर आग्रह करने के बाद ही उन्होंने प्रेस से बात करना स्वीकार किया.

नोबेल सम्मान समारोह के अपने भाषण में और उसके बाद हुए तमाम साक्षात्कारों में उन्होंने बार-बार कहा, “पिछले कुछ समय से मेरे सबसे प्रिय शब्द हैं – ‘मुझे नहीं मालूम’. वे लोग जो यह दावा करते हैं कि उन्हें सब कुछ मालूम है, इस दुनिया की सारी गड़बड़ियों के लिए ज़िम्मेदार हैं.”

एक संग्रहालय में प्रदर्शित डायनासोर के कंकाल को लेकर उनकी एक बड़ी कविता है. उसमें वे कहती हैं कि प्रकृति गलतियां नहीं करती. अलबत्ता यह और बात है कि उसे अपने बनाए लतीफों में आनंद आता है. डायनासोर का हास्यास्पद रूप से छोटा सिर ऐसा ही एक लतीफा था. इस तथ्य को तार्किक रूप से आगे बढ़ाती हुई वे कहती हैं कि इस आकार के सिर में दूरदृष्टि के लिए जगह नहीं होती. यही वजह थी कि बहुत छोटे दिमाग और बहुत बड़ी भूख वाला यह पशु दुनिया से गायब हो गया.

मैं हैरत करता हूं कि बार-बार ‘मुझे नहीं मालूम’ कहने वाली, लगातार सिगरेट पीने वाली इस अम्मा से ज्यादा हमारी बीसवीं शताब्दी के सबसे गहरे रहस्यों के बारे में कितने लोगों को पता होगा. उनके बगैर दुनिया की कविता की कल्पना नहीं की जा सकती. नाम न सुना हो तो उनकी कविताएं ढूंढ कर पढ़िए. और कुछ हो न हो ‘मुझे नहीं मालूम’ कहने का शऊर आ जाएगा


Edited by Manisha Pandey