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असर के सर्वेक्षण ने खोली देश की शिक्षा व्यवस्था की पोल; 8वीं के 56% छात्रों को नहीं आती सामान्य गणित, एक चौथाई बच्चे किताबें पढ़ने में नाकाम

असर के सर्वेक्षण ने खोली देश की शिक्षा व्यवस्था की पोल; 8वीं के 56% छात्रों को नहीं आती सामान्य गणित, एक चौथाई बच्चे किताबें पढ़ने में नाकाम

Friday January 18, 2019 , 5 min Read

फोटो साभार: Shutterstock


"शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत देश के सबसे बड़े गैर सरकारी संगठन 'प्रथम' के वार्षिक सर्वेक्षण ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (असर)- 2018 के मुताबिक आठवीं कक्षा के 57 प्रतिशत छात्रों को बेसिक मैथ्स नहीं आती और 28 प्रतिशत बच्चे किताबों को नहीं पढ़ सकते।"


केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा देश की स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में किए जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद पिछले चार साल में मामूली सुधार ही देखने को मिला है। देश में शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद यह तो सुनिश्चित हो गया है, कि अधिक से अधिक बच्चे प्राथमिक शिक्षा पाने में सक्षम रहे लेकिन ऐसा लगता है कि सिर्फ इतना ही काफी नहीं है।

आज भी पांचवी कक्षा के करीब आधे बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ नहीं पढ़ सकते। वहीं आठवीं कक्षा के 56 फीसदी बच्चे गणित के दो अंकों के बीच भाग नहीं दे सकते। इसके अलावा 8वीं कक्षा के 27 फीसदी छात्र दूसरी के स्तर की किताबें भी नहीं पढ़ पाते और तीसरी क्लास के 70% छात्र तो घटाना भी नहीं जानते।

शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत देश के सबसे बड़े गैर सरकारी संगठन 'प्रथम' के वार्षिक सर्वेक्षण ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (असर)- 2018 के अध्ययन से यह जानकारी मिली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक आठवीं कक्षा के 57 फीसद छात्रों को बेसिक मैथ नहीं आ रही है, साथ ही 28 फीसद बच्चे किताबों को नहीं पढ़ पा रहे हैं।


असर ने यह सर्वेक्षण 596 जिलों के 3,54,944 परिवारों और तीन से 16 साल उम्र समूह के 5,46,527 बच्चों पर किया है। इस दौरान तीन बड़े पहलुओं को ध्यान में रखा गया है। बच्चों का स्कूल में दाखिला, उपस्थिति और सामान्य रूप से किताबों को पढ़ने और गणित की क्षमता तथा स्कूल में उपलब्ध बुनियादी ढांचे पर सर्वेक्षण किया गया है।

द एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक पहले की तुलना में शिक्षा के स्तर में थोड़ा बहुत सुधार देखने को मिला है, लेकिन एक सच ये भी है कि आज भी पांचवी कक्षा के करीब आधे बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ नहीं पढ़ सकते। वहीं, आठवीं कक्षा के 56 फीसदी बच्चे गणित के दो अंकों के बीच भाग नहीं दे सकते। 

रिपोर्ट के मुताबिक, 10 साल पहले के मुकाबले 2018 में स्कूली छात्रों के प्रदर्शन के स्तर में काफी गिरावट आई है। साल 2008 में कक्षा 5 के 37 प्रतिशत छात्र गणित के बुनियादी प्रश्नों को हल कर सकते थे। लेकिन, 2018 में ऐसे छात्रों की संख्या कम होकर 28 फीसदी रह गयी। साल 2016 में यह आंकड़ा 26 प्रतिशत था।


रिपोर्ट के अनुसार सामान्यतः बच्चो में पढ़ने की समस्या भी पाई गयी है। 27 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो पढ़ ही नहीं सकते। साल 2008 में आठवीं कक्षा के 84.8 फीसदी विद्यार्थी कक्षा 2 के स्तर की पाठ्य पुस्तक पढ़ने में सक्षम थे। साल 2018 में ऐसे छात्रों की संख्या कम होकर 72.8% रह गई। यानी कक्षा 8 के 27 फीसद से अधिक छात्र दूसरी कक्षा के स्तर की पुस्तकें भी नहीं पढ़ सकते।

हालांकि, राज्यवार बात करें तो इस दौरान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ने कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। यहां चार वर्षों के भीतर क्रमश: 7.3 फीसदी एवं 3.7 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। वहीं, झारखंड में इन चार वर्षों में कोई सुधार नहीं हुआ और यहां दूसरी का पाठ पढ़ सकने योग्य पांचवीं के बच्चों की संख्या 34.4 फीसदी पर स्थिर रही। 

सामान्य तौर पर लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों से अच्छा कर रही हैं लेकिन जब बात सामान्य अंकगणित की आती है तो लड़के लड़कियों के मुकाबले ज्यादा बेहतर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर 14 से 16 साल की उम्र के सभी लड़कों में से 50 प्रतिशत गणित को ठीक-ठीक हल कर सकते हैं जबकि केवल 44 फीसदी लड़कियां ही ऐसा कर सकती हैं। हालांकि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु में आंकड़ा उलटा है, जहां लड़कियां काफी बेहतर कर रही हैं।


इस रिपोर्ट में सबसे अच्छी खबर यह है कि भारत में पहली बार स्कूल में भर्ती नहीं लेने वाले बच्चों का अनुपात 3 फीसदी से कम हो गया है अब यह अनुपात 2.8% है। यह सुधार आयु समूहों और लिंग में देखा गया है। उदाहरण के लिए, 2018 में, 11 से 14 आयु वर्ग की लड़कियों का अनुपात 2006 की तुलना में 10.3% से घटकर 4.1% रह गया।

हालांकि इस दौरान बच्चों को स्कूलों में मिलने वाली सुविधाओं में बढ़ोतरी हुई है। 2010 में 84.6 फीसद स्कूलों को मिड-डे मील में कवर किया गया था। अब ये दायरा बढ़कर 87.1 फीसद हो चुका है। 2010 में करीब 32 फीसद स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट की व्यवस्था थी और इसमें इजाफा हुआ है। अब करीब 66.4 फीसद स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट है। 


ऐसा कहा जाता है कि कक्षा दो के बाद बच्चों को आसान शब्दों को पढ़ने आना चाहिए। इसके साथ ही गणित के सामान्य सवाल जैसे जोड़, घटाना और गुणा आना चाहिए। लेकिन 2014 से 2018 के बीच की तस्वीर पर ये सर्वे किया गया, जिसकी रिपोर्ट चिंताजनक है। 


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