केसरी... वह कील, जो तिलक ने अंग्रेजी सरकार की ताबूत में ठोंकी
1881 में आज ही के दिन तिलक के नेतृत्व में ‘केसरी’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ था.
भारत में पत्रकारिता के इतिहास में एक बड़ा अध्याय भारत की आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता की भूमिका है. भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने में पत्रकारिता का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है. यह वह पत्रकारिता थी, जो सरकार से सवाल करती थी, उसे गलत नीतियों और जनविरोधी कामों के लिए जिम्मेदार ठहराती थी और जो जनता तक सही खबर और सूचनाएं पहुंचाने का काम करती थी.
आजादी के दौर में प्रकाशित कई पत्र-पत्रिकाओं ने अपना यह पत्रकारीय दायित्व बहुत गंभीरता, सजगता और जिम्मेदारी के साथ निभाया था. इन्हीं नामों में से एक का जन्मदिन है. या यूं कहें कि आज ही के दिन इस अखबार का पहला अंक प्रकाशित हुआ था.
हम बात कर रहे हैं मराठी मुखपत्र ‘केसरी’ की. 1881 में आज ही के दिन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के संपादकीय नेतृत्व में ‘केसरी’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ था. इस अखबार ने मराठी भाषी हर घर तक स्वराज्य और स्वाधीनता की आवाज पहुंचाने काम किया. फिरंगी सत्ता के खिलाफ लोगों को वैचारिक रूप से जागरूक करने और उनमें स्वदेश प्रेम की ज्वाला जलाने का काम किया.
बाल गंगाधर तिलक ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने पहली बार “स्वराज” का नारा दिया था. उनका यह प्रसिद्ध कथन है, “स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा.”
यही स्वराज का नारा आगे चलकर गांधी के ‘पूर्ण स्वराज्य’ और स्वदेशी आंदोलन की आधारशिला बना.
‘मराठा’ और ‘केसरी’ की शुरुआत
तिलक की महाराष्ट्र के आम जनमानस में गहरी पैठ थी. उन्होंने ही लोगों को अपनी संस्कृति, भाषा और संस्कारों के नाम पर एकजुट करने के लिए सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की थी, जो अब पूरे महाराष्ट्र सबसे ज्यादा धूमधाम और जोश के साथ मनाया जाने वाला उत्सव है.
तिलक इस बात को बखूबी समझते थे कि जनमानस तक विद्रोह और विरोध का विचार पहुंचाने और उनकी आवाज को एकजुट करने के काम में अखबार एक बहुत बड़ा हथियार हो सकता है. केसरी वही हथियार था, जिसे तिलक ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ उठाया था.
अखबार शुरू करने के लिए उन्होंने जनता के सहयोग से एक प्रेस खरीदा, जिसका नाम रखा गया ‘आर्य भूषण प्रेस‘. इसी प्रेस से दो अखबारों का प्रकाशन शुरू हुआ. अंग्रेजी में ‘मराठा’ और मराठी में ‘केसरी.’ इन अखबारों के लिए आलेख लिखने से लेकर उसके संपादन तक का बहुत सारा काम तिलक स्वयं किया करते थे. उनके साथ आजादी की लड़ाई में सक्रिय बहुत सारे लोगों की टीम भी थे, जो बिना किसी आर्थिक लाभ के भी स्वेच्छा से केसरी के लिए सहयोग करते थे.
केसरी के पत्रकारीय मूल्य और सिद्धांत
केसरी की शुरुआत के वक्त उन्होंने अपने पत्रकारीय सिद्धांतों, मूल्यों और केसरी शुरू किए जाने के पीछे अपने उद्देश्य को कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया था-
‘‘केसरी निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ सभी सवालों पर चर्चा करेगा. आज हमारे यहां अंग्रेज सरकार की चापलूसी की जो प्रवृत्ति दिखाई देती है, वह कतई राष्ट्रहित में नहीं है. ‘केसरी‘ के लेख इसके नाम को सार्थक करने वाले होंगे.”
केसरी का उद्देश्य सिर्फ लोगों तक वास्तविक खबरें, सूचनाएं पहुंचाना, अंग्रेजी सरकार की कारगुजारियों का पर्दाफाश करना भर नहीं था. इसके साथ-साथ केसरी भारतीय जनमानस में अपने इतिहास, भाषा, संस्कृति और संस्कारों के प्रति स्वाभिमान का भाव जगाने का काम भी कर रहा था.
इतने सालों की गुलामी का एक नतीजा ये भी हुआ था कि बड़ी संख्या में लोग सचमुच अपने ऊपर शासन करने वाले अंग्रेजों और उच्च तबके के अंग्रेजीदां लोगों को अपने से श्रेष्ठ मानने लगे थे. उनमें अपनी भाषा, संस्कृति और अपनी जड़ों को लेकर एक तरह का हीनताबोध घर कर गया था.
महात्मा गांधी भी यह बात बार-बार कहा करते थे कि दूसरे की भाषा और संस्कृति को महान समझकर, खुद को कमतर महसूस करना और दूसरे व्यक्ति की नकल करने की कोशिश करना गुलाम मानसिकता का परिचय है. गांधी को अंग्रेजी भाषा आती थी, लेकिन उन्होंने जानबूझकर अंग्रेजी बोलने से इनकार किया था. पूरी तरह स्वदेशी वस्त्र, वेशभूषा और आचार-विचार अपनाया था.
तिलक ने गांधी से बहुत पहले इसी राह का अनुसरण किया था. उनके अखबार केसरी ने लोगों में अपनी संस्कृति और इतिहास के प्रति गौरव का भाव जगाने की कोशिश की. उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ जमकर लेख लिखे. कई बार तो इस कारण से अंग्रेज सरकार ने केसरी की प्रतियां जब्त कर लीं, उसे जला दिया और तिलक को पकड़कर जेल में डालने की कोशिश की.
केसरी बना जनता की आवाज
तिलक बार-बार जेल जाते और महीनों जेल में बिताते. फिर भी जेल से बाहर आते ही वह दोबारा अपने लक्ष्य में जुट जाते. केसरी की आवाज जन-जन तक पहुंच रही थी और जनता की आवाज बन गई थी. केसरी जल्द ही पूरे महाराष्ट्र का सबसे प्रसिद्ध अखबार हो गया था.
इस अखबार को छापने से लेकर उसे घर-घर पहुंचाने तक हर स्तर पर तिलक खुद इन्वॉल्व रहते थे. उनके पास इतने पैसे और संसाधन नहीं थे कि वह हर काम के लिए सेवाएं जुटा पाते. इसलिए बहुत सारा शारीरिक श्रम भी उन्हें खुद अपने हाथों से करना पड़ता था.
कई बार भारी-भारी कागज के लट्ठों और भारी मशीनों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना, हजारों की संख्या में अखबारों को लिफाफों में रखना, डाक टिकट लगाना और उसे पोस्ट करना. यह सारे काम खुद तिलक और उनके सहयोगी स्वयं किया करते थे.
एक बार ही बात है. पुणे में भयानक प्लेग फैल गया. ऐसे में प्रेस में काम कर रहे लोग भी बीमारी की चपेट में आ गए. ऐसे में प्रेस के मालिक ने समय पर केसरी की प्रतियां छापने और पहुंचाने में अपनी असमर्थता जाहिर की. इसके जवाब में तिलक ने कहा था कि इस प्लेग में यदि हम इोनों की भी मृत्यु हो गई तो भी केसरी की प्रतियां समय पर पहुंचेंगी.
बाल गंगाधर राव तिलक के निधन पर महात्मा गांधी ने कहा था- “हमारे समय के किसी व्यक्ति की जनमानस पर इतनी गहरी पकड़ नहीं थी, जितनी तिलक की थी.”
Edited by Manisha Pandey