वीरेंद्र गुप्ता ने Dailyhunt को खरीदा, Josh को लॉन्च किया और Verse Innovation को बना दिया यूनिकॉर्न
वीरेंद्र गुप्ता ने 2007 में इंटरनेट के जरिए क्लाइसिफाईड ऐड्स की जानकारी देने के मकसद से वर्स इनोवेशन को शुरू किया था. उन्होंने 2011 में न्यूज ऐप डेलीहंट(Dailyhunt) को खरीदा और 2020 में शॉर्ट वीडियो ऐप Josh को लॉन्च किया. तगड़ी फंडिंग और बिजनेस बढ़ने के साथ कंपनी दिसंबर, 2021 को यूनिकॉर्न बन गई.
टेक्नोलॉजी यानी इंटरनेट के शुरुआती दौर से लेकर आज तक इसका रूप पूरी तरह बदल चुका है. टेक्नोलॉजी से जुड़े डिवाइसेज का भी प्रारुप बदला है. ब्लैक एंड वाइट टीवी फिर, रंगीन टीवी, कम्प्यूटर, फिर फीचर फोन और अब स्मार्टफोन आ चुके हैं.
डिवाइसेज का प्रारूप बदलने के साथ-साथ एक और चीज बदल रही थी, वो था कंटेंट परोसने और उसे कंज्यूम करने का तरीका. दरअसल बदलती टेक्नोलॉजी के साथ लोगों की जिंदगी भी भागदौड़ वाली होती गई. उनके पास समय का अभाव होने लगा.
उसी गिने चुने समय में कंटेंट देने के लिए कंपनियों को कंटेंट का फॉर्मैट भी बदलना पड़ा. कंपनियों ने कंटेंट को मिडियम के हिसाब से बदलना शुरू किया और इस तरह एंटरटनेमेंट और कम्यूनिकेशन का प्रारुप बदलता गया.
कुछ ऐसी कंपनियां थी जिन्होंने इस बदलाव को भी उसी रफ्तार से समझा और खुद को उसी माहौल में ढाल लिया. जिसका उन्हें अच्छा खासा फायदा मिला. ऐसी ही एक कंपनी है वर्स इनोवेशन(
). वर्स इनोवेशन न्यूज ऐप्लिकेशन डेलीहंट( ) और शॉर्ट वीडियो ऐप जोश( ) की पैरंट कंपनी है.कहां से आया आइडिया
वर्स इनोवेशन के फाउंडर का नाम वीरेंद्र गुप्ता हैं, जो पेशे से इंजीनियर थे. उनके पास टेलीकॉम इंडस्ट्री में दस साल का अनुभव था. उन्होंने बीपीएल मोबाइल, ऑनमोबाइल, भारती सेल्युलर और ट्राईलॉजी जैसी कंपनियों में काम किया था. टेलीकॉम इंडस्ट्री में होने की वजह से वीरेंद्र इस इंडस्ट्री में होने वाले बदलावों से पूरी तरह वाकिफ थे.
मगर उन्हें एक चीज खटक रही थी. उन्होंने देखा कि बड़े शहरों में तो इंटरनेट की अच्छी खासी पहुंच थी. या ये कहना गलत नहीं होगा कि इंटरनेट को सिर्फ इंग्लिश बोलने वाले लोगों से ही जोड़कर देखा ही जाता था, जो चीज उन्हें हजम नहीं हो रही थी.
वो इंटरनेट को आम लोगों तक पहुंचाना चाहते थे और उन्होंने इस खाई को भरने की सोची. इस तरह शुरुआत हुई वर्स इनोवेशन की. गुप्ता को ये आइडिया इतना पसंद आया कि उन्होंने 10 साल के करियर को बिना अधिक समय गंवाए टाटा-टाटा बाय-बाय कर दिया.
वीरेंद्र ने जिस समय टेक कंपनी बनाने को सपना देखा उस समय टेक कंपनियों में स्थिरता, उनके सफल होने या उनसे पैसे बनाने का स्कोप काफी कम था. उनके असफल होने की ज्यादा गुंजाइश थी.
लोग उन्हें कई बार चेतावनी दे रहे थे कि 100 में से 99 स्टार्टअप फेल होते हैं. मगर वीरेंद्र ने सारी आशंकाओं को दरकिनार कर दिया. गुप्ता कहते हैं कि उनकी बातें भी सही थीं. आंकड़े भी बिल्कुल सही बता रहे थे.
लेकिन अगर आपको किसी आइडिया पर पूरे दिल से भरोसा हो तो आप किसी की बात नहीं सुनते. आपको खुद पर और अपने दिल पर पूरा भरोसा होता है. किसी आइडिया को लेकर अगर आपके दिल में भरोसा न हो तो ये कदम बिल्कुल नहीं लेना चाहिए.
2007 में हुई शुरुआत
वर्स ने 2007 में वैल्यू ऐडेड सर्विस (VAS) प्लैटफॉर्म की तरह शुरुआत की थी. ये वो समय था जब इंटरनेट और मोबाइल के कॉम्बिनेशन में कई तरह के बिजनेस शुरू किए जा रहे थे. जैसे ओला, जोमैटो, पेटीएम.
बस फर्क सिर्फ स्पेशल इंग्रिडिएंड का होता था और वर्स के लिए ये स्पेशल इंग्रिडिएंट था क्लासिफाईड ऐड्स. गुप्ता चाहते थे कि लोगों को फोन पर ही नौकरी, मैट्रीमोनी, प्रॉपर्टी, न्यूज और सभी तरह की जानकारियां मिल जाएं.
दूसरे शब्दों में कहें तो वर्स अखबारों में टीवी में आने वाले ऐड्स को यूजर्स के फोन पर इंटरनेट के जरिए उपलब्ध कराने का काम करती थी. यह टेलीकॉम कंपनियों को न्यूजलेटर्स, मैट्रिमोनियल साइट्स के सब्सक्राइबर्स को SMS अलर्ट्स के जरिए नोटिफाई करने के लिए मदद करती थी.
शुरुआती दौर में ही जुटा ली फंडिंग
वीरेंद्र ने वर्स के शुरुआती दौर में ही फंडिंग जुटा ली. उन्हें अपनी पहली कंपनी ऑनमोबाइल से 1 मिलियन डॉलर की सीड फंडिंग मिली. इस फंडिंग ने वीरेंद्र को अपने सपने पर कड़ी लगन से काम करने का हौंसला दिया.
चार सालों तक गुप्ता का ये आइडिया काफी मजबूती से चला. उन्होंने इंडिया से लेकर बांग्लादेश और अफ्रीका के देशों में मौजूद मोबाइल ऑपरेटर्स को अपनी सर्विस पहुंचाई.
उनके शब्दों के मुताबिक, उस समय प्रॉफिटेबल बिजनेस और स्केलेबल बिजनेस था जिसके अरबों यूजर्स थे. वर्स की सफलता को देखकर उन्हें इतना तो समझ आ गया था कि स्थानीय भाषा में कंटेंट की भारी भरकम डिमांड है.
बिजनेस की दिशा बदली
2011 में गुप्ता ने बिजनेस की दिशा को थोड़ा बदला. उस समय एक और प्लैटफॉर्म काफी पॉपुलर हो रहा था, जिसका नाम था न्यूजहंट(Newshunt). न्यूजहंट मोबाइल पर लोकल भाषा में ही खबरें ऑफर कर रहा था.
लोकल लैंग्वेज के स्कोप को देखते हुए वीरेंद्र ने 2011 में न्यूजहंट की पैरंट कंपनी इटर्नो इन्फोटेक को खरीदने का फैसला किया. एक बार फिर लोगों ने उन्हें सतर्क करते हुए कहा कि उनका ये कदम गलत साबित हो सकता है. तर्क ये था कि लोकल भाषा में कंटेंट इस्तेमाल करने वालों की कुछ खास आबादी नहीं है. यानी यूजर बेस काफी कम है.
मगर एक बार फिर वीरेंद्र ने अपने दिल की सुनी और न्यूजहंट को खरीद लिया. दरअसल उस समय ये धारणा थी कि सिर्फ इंग्लिश बोलने वाले लोग ही इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं.
इंटरनेट को बड़े-बड़े शहरों में बोर्ड रूम में बैठे बड़े-बड़े लोगों की चीज समझी जाती थी. लेकिन इस आबादी से भारत गायब था. वीरेंद्र बस इसी खाई को भरना चाहते थे.
वीरेंद्र कहते हैं कि उन्हें इस दौर में एक एक ही चीज समझ आई कि भले ही अभी ये ऐक्शन बड़े शहरों में हो रहा है लेकिन छोटे शहरों में भी इनका स्कोप है. खैर वीरेंद्र ने न्यूजहंट के जरिए बी2बी से बी2सी में कदम रखा.
Newshunt बना Dailyhunt
न्यूजहंट को खरीदने का फैसला सही साबित हुआ. न्यूजहंट को खरीदने के साथ ही वर्स की सफलता में चार चांद लग गए. न्यूजहंट का 4 साल बाद नाम बदलकर डेलीहंट कर दिया गया. और इस तरह कंपनी बी2सी मार्केट में उतरी.
अगले कुछ साल वर्स के लिए काफी अच्छे बीते. 2009 में 14 मिलियन डॉलर का फंड हासिल किया और 2014 में यह रकम 18 मिलियन पर पहुंच गई. अगले ही साल यह 50 मिलियन डॉलर पर पहुंच गई और 2016 में इसे 40 मिलियन डॉलर और मिले.
2016 वीरेंद्र के लिए धमाकेदार साबित हुआ. लोकल लैंग्वेज मार्केट और यूजर्स दोनों ही एकाएक बढ़ गए. 2011 में जब उन्होंने न्यूजहंट को खरीदा था तब उन्हें अंदाजा नहीं था कि लोकल लैंग्वेज का मार्केट इस तरह बढ़ेगा. जब लोकल लैंग्वेज का समय आया तो इसका मार्केट बढ़ा नहीं बल्कि कई गुना हो गया.
भारत से लेकर बाहर की कंपनियां भाषाई बाजार का एक हिस्सा पाने के पैसा लगाने के लिए आतुर थीं. बिजनेस इतनी से तेजी से बढ़ रहा था कि वीरेंद्र ने खुद को डिमांड के हिसाब से पिछड़ा हुआ पाया. वीरेंद्र इसे अपनी सबसे बड़ी असफलता मानते हैं.
इसी असफलता की वजह से उनकी मुलाकात अपने को फाउंडर से हुई. उमंग बेदी फेसबुक इंडिया के पूर्व हेड थे. उन्होंने 2018 में गुप्ता को जॉइन कर लिया. दोनों के साथ आने से बिजनेस की दिशा काफी साफ हो गई.
कुछ समय के लिए फंडिंग का सिलसिला थमा मगर फिर 2019 में इसने फिर 94 मिलियन डॉलर जुटाए. डेलीहंट और जोश की पैरंट कंपनी वर्स के निवेशकों में गोल्डमैन सैक्स, फाल्कन एज कैपिटल, सिकोया, ल्यूपा सिस्टम्स, IIFL, बे कैपिटल, एडलवाइज जैसे नाम हैं.
2020 में जब भारत सरकार ने टिकटॉक को बैन किया तो डेलीहंट ने इस मौके का फायदा उठाने के लिए तुरंत शॉर्ट वीडियो प्लैटफॉर्म जोश को लॉन्च कर दिया. जोश लॉन्च होते ही यूजर्स के बीच तुरंत पॉपुलर हो गया.
यूनिकॉर्न का टैग
फंडिंग के साथ कंपनी को मिली वैल्यूएशन और स्केल. ताबड़तोड़ फंडिंग की बदौलत वर्स दिसंबर, 2021 में यूनिकॉर्न कंपनी बन गई. फिलहाल इसका वैल्यूएशन 3 अरब डॉलर से ऊपर है.
आज की तारीख में कंपनी का बेंगलुरु और कर्नाटक में हेड ऑफिस है. प्लैटफॉर्म के 350 मिलियन यूजर्स हैं. दोनों ही प्लैटफॉर्म 14 भाषाओं में उपलब्ध है. इस साल वर्स ने अब तक 612 मिलियन डॉलर जुटा लिए हैं.
FY20 में डेलीहंट का ऑपरेटिंग रेवेन्यू बढ़कर 267.6 करोड़ रुपये पर पहुंच गया जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 152.7 करोड़ रुपये था. लॉस भी बढ़कर 298.9 करोड़ से बढ़कर 401 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.
एक्सपैंशन
वर्स इनोवेशन अब मिडिल ईस्ट में विस्तार करने की तैयारी कर रही है. कंपनी डेलीहंट को सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, ओमान, कतर और कुवैत में ले जाएगी. इसके बाद इराक, इजरायल, इजिप्ट जैसे देशों में भी शुरू करेगी. इन्हीं इलाकों में कंपनी डेलीहंट को हिब्रू, फारसी और अरेबिक जैसे भाषाओं में लॉन्च करेगी.
कॉम्पिटीशन
जोमैटो, पेटीएम, ओला की तरह ही जब वर्स शुरू हुई थी तब इसका कोई कॉम्पिटीटर नहीं था. मगर आज की तारीख में इसके कई कॉम्पिटीटर बन चुके हैं. बजफीड, इनशॉर्ट, मोज शेयरचैट भी इसी सीरीज में हैं.