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भारत में अपशिष्ट प्रबंधन क्रांति को आगे बढ़ा रही शून्य-अपशिष्ट सोसायटी

शहरों में प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन ज़्यादा ज़रूरी है, जहां अनुचित निपटान से जल-जमाव हो सकता है और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ सकते हैं. हालाँकि, कई शहर शून्य-अपशिष्ट रणनीतियों को अपनाकर, समुदायों और आवास समाजों को टिकाऊ जीवन के मॉडल में बदलकर चुनौती का सामना कर रहे हैं.

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन क्रांति को आगे बढ़ा रही शून्य-अपशिष्ट सोसायटी

Wednesday September 18, 2024 , 5 min Read

भारत जैसे तेजी से शहरीकरण वाले देशों में अपशिष्ट प्रबंधन सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता की आधारशिला है. देश में प्रतिदिन 159,000 टन से अधिक कचरा उत्पन्न होता है और स्वच्छ तथा स्वस्थ रहने के लिए संग्रहण, पृथक्करण और प्रसंस्करण की कुशल प्रणालियाँ महत्वपूर्ण हैं. जीवन में प्रतिदिन स्वच्छता के महत्व को पहचानते हुए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इस बात पर जोर दिया कि कैसे स्वच्छता एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गई है, जो पूरे देश में व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित कर रही है.

इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए, स्वच्छ भारत मिशन की 10वीं वर्षगांठ पर स्वभाव स्वच्छता संस्कार स्वच्छता (4एस) अभियान शुरू किया जा रहा है. 17 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2024 तक चलने वाली यह पहल वार्षिक “स्वच्छता ही सेवा” परंपरा के अनुरूप है और महात्मा गांधी की जयंती पर मनाए जाने वाले स्वच्छ भारत दिवस के अग्रदूत के रूप में कार्य करती है.

17 सितंबर, 2024 तक, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) ने पूरे ग्रामीण भारत में ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन में महत्वपूर्ण प्रगति की है. 3,98,744 गांवों ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू की है, जबकि प्रभावशाली 4,96,495 गांवों ने अपशिष्ट संग्रहण, पृथक्करण और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था की है. गावों में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए 3,52,162 कचरा संग्रहण शेड और 9,31,454 सामुदायिक खाद गड्ढे बनाये गए हैं . कुशल कचरा संग्रहण ने के लिए 5,04,913 वाहन तैनात किए गए हैं. तरल अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में, 17,58,725 सामुदायिक सोख गड्ढे और 72,65,636 घरेलू सोख गड्ढे बनाये गए हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जल जमाव और प्रदूषण को कम करने में मदद मिली है.

जहाँ एक ओर ग्रामीण क्षेत्र कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति कर रहे हैं , वही दूसरी ओर शहरों को विशेष रूप से मानसून के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

शहरों में प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन ज़्यादा ज़रूरी है, जहां अनुचित निपटान से जल-जमाव हो सकता है और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ सकते हैं. हालाँकि, कई शहर शून्य-अपशिष्ट रणनीतियों को अपनाकर, समुदायों और आवास समाजों को टिकाऊ जीवन के मॉडल में बदलकर चुनौती का सामना कर रहे हैं.

मानसून का मौसम प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन की तात्कालिकता को रेखांकित करता है, क्योंकि अनुचित निपटान से जल-जमाव हो सकता है और स्वास्थ्य के लिए जोखिम बढ़ सकता है. सम्पूर्ण भारत के शहर शून्य-अपशिष्ट रणनीतियों को अपना रहे हैं और समुदायों तथा आवासीय समाजों को टिकाऊ जीवन के मॉडल में बदल रहे हैं.

प्रतिदिन 123,000 टन से अधिक कचरे का प्रसंस्करण किया जाता है और 86,000 से अधिक वार्डों में घर-घर जाकर कचरे का संग्रह और पृथक्करण अभ्यास किया जाता है. भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए जारी प्रयासों में उल्लेखनीय प्रगति देखी जा रही है. इस सफलता का अभिन्न अंग शून्य-अपशिष्ट आवास समितियां हैं, जो अपशिष्ट उत्पादन को कम करने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाती हैं.

नवी मुंबई में, 1,500 निवासियों के साथ सीवुड एस्टेट एनआरआई कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी इस दिशा में उल्लेखनीय योगदान दे रही है. सोसायटी प्रतिदिन लगभग 1,000 किलोग्राम कचरा उत्पन्न करती है जिसमे 600 किलोग्राम सूखा कचरा और 450 किलोग्राम गीला कचरा शामिल है. जबकि सूखे कचरे का प्रबंधन स्थानीय नगर निगम द्वारा किया जाता है, गीले कचरे को उसी स्थान पर संसाधित किया जाता है, जिससे प्रति दिन लगभग 50 किलोग्राम खाद का उत्पादन होता है. सोसायटी हरित स्थानों को बनाए रखने के लिए उपचारित पानी का उपयोग करके प्रतिदिन 105 किलोलीटर की क्षमता वाला एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी संचालित करती है. मानसून के मौसम की तैयारी में, सोसायटी ने नियमित निरीक्षण और जागरूकता अभियान सहित स्वच्छता प्रयासों को बढ़ाया है.

बेंगलुरु में, एचएसआर लेआउट में 650 घर है जो सामूहिक रूप से प्रति दिन लगभग 20 टन कचरा उत्पन्न करते हैं. 80 % कचरे को गीले, सूखे और रिजेक्ट श्रेणियों में विभाजित करने के साथ, सोसायटी डोर-टू-डोर संग्रह, एक ऑन-साइट एसटीपी और एक सूखा कचरा संग्रह केंद्र के माध्यम से कुशल कचरा प्रबंधन सुनिश्चित करती है. बरसात के मौसम में जल-जमाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को रोकने के लिए समुदाय नियमित रूप से स्वच्छता अभियान और बुनियादी ढांचे की जांच का आयोजन करता है. सोसायटी का अपशिष्ट प्रबंधन शिक्षण केंद्र ‘स्वच्छाग्रह कालिका केंद्र’, खाद बनाने और कचरे और अपशिष्ट पदार्थों के उचित ढंग से निबटान और प्रबंधन के बारे में लोगों को जागरूक करता है.

दक्षिण में केरल के कालीक में, रॉक वे रेजिडेंट्स एसोसिएशन ने अपने 96 घरों में 100 प्रतिशत कचरा पृथक्करण लागू किया है. सोसायटी में प्रति माह 3,000 किलोग्राम से अधिक कचरा निकलता है, जिसमें जैव-अपशिष्ट को बायोगैस संयंत्रों के माध्यम से ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है या घरेलू बगीचों के लिए खाद बनाया जाता है. बोकाशी बाल्टी और गीबिन मल्टी-लेयर एरोबिक किचन कम्पोस्ट बिन जैसे उपकरणों का उपयोग हर महीने 1,500 किलोग्राम से अधिक खाद का उत्पादन करने के लिए किया जाता है. मानसून के दौरान स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए, सोसायटी, अपशिष्ट प्रबंधन के लिए हरिता कर्म सेना के साथ सहयोग करती है और मानसून पूर्व सफाई के अभियान संचालित करती है.

ये शून्य-अपशिष्ट आवास समितियाँ पूरे भारत में अपशिष्ट प्रबंधन में बदलाव के लिये सामुदायिक स्तर पर किये जा रहे प्रयासों को दर्शाती हैं. चूंकि स्वभाव स्वच्छता संस्कार स्वच्छता (4एस) अभियान टिकाऊ जीवन को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ भारत मिशन के साथ संरेखित है इसलिए ऐसे उदाहरण देश भर के शहरों के लिए ब्लूप्रिंट के रूप में काम करते हैं. खाद बनाने से लेकर सीवेज उपचार और पृथक्करण तक नवीन प्रणालियों का एकीकरण, स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण बनाए रखने में सक्रिय नागरिक भागीदारी की भूमिका पर प्रकाश डालता है. निरंतर प्रयासों और जागरूकता के साथ, भारत एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में स्वच्छता के सिद्धांतों को मजबूत करते हुए, स्वच्छ, हरित भविष्य की ओर अपनी यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है.

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