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जग-मग ज़िंदगी

गरीब ग्रामीणों की ज़िंदगी को रोशन किया हरीश हांडे ने। कम बजट में उपलब्ध कराई घरों में सोलर एनर्जी और सौर ऊर्जा के फायदों का किया जमकर प्रयास।

जग-मग ज़िंदगी

Friday November 18, 2016 , 5 min Read

अंग्रेजी की एक कहावत है 'वनर्स डोंट डू डिफरेंट थिंज्स दे डू थिंज्स डिफरेंटली' अर्थात विजेता अलग कार्य नहीं करते लेकिन वो हर कार्य को अलग ढंग से करते हैं। इसी कहावत को चरितार्थ कर दिखाया हरीश हांडे ने, जिन्होंने ग्रामीणों की जिंदगी अपनी मेहनत, लगन और हुनर से रौशन कर दी। हरीश ने गांव देहात में रहने वाले गरीबों के घर तक सौर ऊर्जा पहुंचाई और उनके बेहतरीन काम को दुनिया ने जाना और सराहा। अपने इस कार्य के लिए उन्हें रोमन मैज्सेसे पुरस्कार से भी नवाजा गया।

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हरीश का जन्म बंगलौर में और उनका पालन पोषण राउरकेला में हुआ। पढ़ाई में वे हमेशा होशियार छात्र रहे। उन्होंने आईआईटी खड़कपुर से इंजीनियरिंग का अध्ययन किया और फिर अमरीका चले गए। जहां मैसाचुसेंटर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी से अपनी मास्टर्स की डिग्री हासिल की। फिर उन्होंने थर्मल साइट पर काम करना शुरू कर दिया और इसी दौरान वे डोमिनियन रिपब्लिक गए जहां हरीश ने देखा कि लोग किस प्रकार सौर ऊर्जा का प्रयोग अपने घरों में कर रहे थे। उसके बाद हरीश ने तय किया कि वे अपना शोध ऊर्जा के सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में करेंगे। उसके बाद रिसर्च के लिए उन्होंने भारत और श्रीलंका के गांवों में बहुत समय बिताया। श्रीलंका में भाषा की समस्या, लिट्टे की समस्या और संसाधनों का भारी आभाव था। श्रीलंका के गांव में हरीश ने लगभग 6 महीने रिसर्च की। ग्रामीण भारत में किसी को सोलर एनर्जी का ज्ञान नहीं था न ही उसका प्रयोग हो रहा था। तब तक हरीश को यह बात काफी अच्छी तरह समझ आ चुकी थी कि किताबी ज्ञान और वास्तविक्ता में कितना अंतर होता है। हर गांव की जरूरत हर परिवार की जरूरत एक दूसरे से अलग थी। यह सब चीजें वो थी जो कोई शहर में रहकर नहीं जान सकता। 

हरीश ने 1995 में बहुत कम पैसे में सेल्को इंडिया की शुरुआत की। कंपनी का लक्ष्य था सोलर एनर्जी के प्रयोग से गांव देहातों का विकास करना। शुरुआत में हरीश ने बहुत कम बजट में अपना काम चलाया, उन्हें काफी दिक्कते भी आईं लेकिन वे डटे रहे और कम बजट के नए नए आइडियाज पर काम करते रहे। सेल्को ने कोई नया अविष्कार नहीं किया बल्कि पहले से चली आ रही तकनीकों में जान फूंकी। तकनीकी स्तर में छोटे मोटे सुधार किए। धीरे-धीरे काम ने गति पकडऩी शुरू की लेकिन फिर भी शुरूआती वर्षो में हरीश के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह किसी अन्य को अपने साथ रख पाएं इसलिए हर घर में सिस्टम वो स्वयं लगाने जाते थे। उस समय एक सिस्टम की कीमत 15 हजार रुपये के आसपास थी इसलिए केवल वे ही लोग सोलर एनर्जी सिस्टम लगवा रहे थे जो आर्थिक रूप से संपन्न थे।

हरीश ने तय किया की गांव में वे अपने सिस्टम का विस्तार करेंगे और उन्होंने फाइनेंस की संभावनाओं पर विचार करना शुरू किया ताकि गरीब आदमी भी आसान किश्तों में उनका सिस्टम खरीद सके। अब तक आस-पास का हर व्यक्ति चाहे वो अमीर हो या गरीब हरीश के सिस्टम की जरूरत महसूस करने लगा था। हर किसी को अपने घर में रौशनी चाहिए थी लेकिन दिक्कत केवल पैसे की थी। दो साल की कठोर मेहनत के बाद हरीश ने सिस्टम को फाइनेंस करवाने में कामयाबी पाई। अब आसान किश्तों में सिस्टम मिल रहे थे और मांग लगातार बढ़ती जा रही थी। अब गांव में सोलर लाइट की वजह से रौशनी होने लगी। लोगों की जिंदगी आसान होने लगी।

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आज सेल्को के पास 375 से ज्यादा कर्मचारियों की एक फौज है जो कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु में कार्य कर रही है और ग्रामीण भारत को रौशन करने की दिशा में हर संभव प्रयास में जुटी है। सेल्को के इन राज्यों में 45 से अधिक सर्विस स्टेशन हैं। 1995 से लेकर अब तक सेल्को 2 लाख से ज्यादा लोगों के घरों में अपने सिस्टम लगा चुका है।

सेल्को में इनोवेशन लैब खोली हैं जिसका मकसद ग्रामीण इलाकों के लोगों की जरूरतों को देखते हुए अपने उत्पाद का निर्माण करना है। लैब में सौर उर्जा से चलने वाले लैंप व अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं। सेल्को को अब सरकार का भी साथ मिल रहा है। सोलर एनर्जी के ज्यादा से ज्यादा प्रयोग को अब सरकार भी बढ़ावा दे रही है। एक तरफ जहां खत्म होते प्राकृतिक संसाधनों जैस तेल, कोयले की खपत सोलर एनर्जी के कारण कम होती है वहीं यह पूरी तरह प्रदूषण रहित भी है और उसके प्रयोग में किसी तरह का व्यवधान नहीं आता, बस एक बार लगाइए और बहुत कम कीमत में एनर्जी का प्रयोग कीजिए।

अपनी कड़ी मेहनत के बल पर हरीश हांडे ने कर दिखाया यदि काम करने का जुनून हो तो सारी दिक्कतें खुद ब खुद समाप्त होती जाती हैं। 

आईआईटी से इंजीनियरिंग के बाद हरीश भी कोई आराम की नौकरी कर सकते थे लेकिन उन्होंने कुछ और ही करने की ठानी। सोलर एनर्जी का ऐसा प्रयोग और प्रचार प्रसार भारत में पहली बार किसी ने किया। हरीश के इस सराहनीय प्रयास ने देश के गांव को भी रौशन कर दिया।