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खेत में काम करने के लिए इस इंजीनियर ने छोड़ दी अपनी 16 साल पुरानी इन्फोसिस की नौकरी

जो करता था विदेश में नौकरी, आज कर रहा है खेती...

खेत में काम करने के लिए इस इंजीनियर ने छोड़ दी अपनी 16 साल पुरानी इन्फोसिस की नौकरी

Wednesday April 04, 2018 , 5 min Read

कर्नाटक के 43 वर्षीय शंकर कोटियर फ़िलहाल डेयरी फ़ार्मिंग के साथ-साथ रबर और सुपारी की खेती भी कर रहे हैं। शंकर कोटियाल, कर्नाटक के मूडबिद्री के मूडु-कोनाजे गांव के रहने वाले हैं। खेती से पहले वह विदेश में इन्फ़ोसिस कंपनी में काम करते थे और एक सफल पेशेवर जीवन जी रहे थे। 

शंकर कोटियर

शंकर कोटियर


शुरूआत में शंकर 8 एकड़ ज़मीन ख़रीदी और 5 गाय भी खरीदीं। चीज़ें काम कर गईं और फ़िलहाल उनके पास 9 एकड़ ज़मीन पर रबर का उत्पादन है और दो एकड़ में सुपारी का। इसके अलावा, उनके पास 40 जानवर भी हैं। 

विदेश में किसी बड़े संगठन की नौकरी छोड़कर देश लौटना और फिर खेती करना, सुनने में यह आपको अटपटा लग सकता है और हो सकता है कुछ लोग इसे ग़लती भी कहें। हो सकता है कि आपके परिवारवाले भी इस बात के राज़ी न हों। ख़ैर, जो लोग अलग सोचने और उसे निभाने की हिम्मत रखते हैं, वही कुछ बड़ा करते हैं। “मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं रखता, बल्कि निर्णय लेकर उसे सही बनाने की कोशिश करता हूं।” टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन, रतन टाटा का यह कथन और कर्नाटक के शंकर कोटियन की कहानी, इस बात को प्रमाणित करती है।

इन्फ़ोसिस की नौकरी छोड़ खेती को चुना

कर्नाटक के 43 वर्षीय शंकर कोटियर फ़िलहाल डेयरी फ़ार्मिंग के साथ-साथ रबर और सुपारी की खेती भी कर रहे हैं। शंकर कोटियाल, कर्नाटक के मूडबिद्री के मूडु-कोनाजे गांव के रहने वाले हैं। खेती से पहले वह विदेश में इन्फ़ोसिस कंपनी में काम करते थे और एक सफल पेशेवर जीवन जी रहे थे। शंकर ने नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलजी (एनआईटी, सूरथकल) से 1996 में कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की डिग्री की। इसके बाद वह इन्फ़ोसिस से जुड़े और उन्होंने 16 सालों तक कंपनी को अपनी सेवाएं दीं। 2011 में उन्होंने नौकरी छोड़कर ऑन्त्रेप्रेन्योर बनने का फ़ैसला लिया और इसके लिए उन्होंने कृषि क्षेत्र को चुना।

इनसे मिली प्रेरणा

शंकर की इस बड़े और जीवन की दिशा बदल देने वाले फ़ैसले की प्रेरणा बने, जापान के मसानोबु फ़ुकुओ, कर्नाटक के नारायण रेड्डी और महाराष्ट्र के सुभाष पाणेकर। उन्होंने महीनों तक अलग-अलग जगहों के खेतों, खेती के तरीकों और मौसमों को समझा। करीब 2 साल लंबी रिसर्च के बाद उन्होंने 2013 में अपना काम शुरू करने का निर्णय लिया। शंकर के पास खेती का कोई अनुभव नहीं था और न ही उनके परिवार का खेती से कोई संबंध रहा था। उनके पास पैतृक ज़मीन भी नहीं थी।

ऐसे सीखीं खेती की बारीकियां

टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए शंकर ने यह बात स्वीकार की कि खेती की बारीकियां सीखने के लिए खेतों का दौरा करने से बेहतर कोई और ज़रिया हो ही नहीं सकता। उन्होंने बताया कि जब वह विदेश में काम कर रहे थे, तब वह अक्सर वीकेंड्स में खेतों में घूमने जाया करते थे। उन्होंने बताया कि अपने इस शौक़ के चलते, उन्हें पहले से ही खेती के विभिन्न तरीकों और मशीनों के इस्तेमाल की ठीक-ठाक जानकारी थी। साथ ही, खेती के परंपरागत तरीक़ों और आधुनिक खेती पर उन्होंने कई किताबें भी पढ़ रखी थीं, जिससे उनकी समझ में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ।

अच्छी सैलरी की नौकड़ी छोड़कर खेती करने का इरादा बनाने के संबंध में द हिंदू बिज़नेस लाइन से बात करते हुए उन्होंने बताया कि बिज़नेस प्लान तैयार करने के बाद उन्हें समझ आ गया था कि डेयरी फ़ार्मिंग से उन्हें पर्याप्त मुनाफ़ा होगा, बशर्ते इसमें पर्याप्त समय भी खर्च होगा।

बिज़नेस की समझ ने की मदद

शुरूआत में शंकर 8 एकड़ ज़मीन ख़रीदी और 5 गाय भी खरीदीं। चीज़ें काम कर गईं और फ़िलहाल उनके पास 9 एकड़ ज़मीन पर रबर का उत्पादन है और दो एकड़ में सुपारी का। इसके अलावा, उनके पास 40 जानवर भी हैं। शंकर रोज़ाना, दक्षिण कन्नड़ को-ऑपरेटिव मिल्क यूनियन लि. (डीकेएमयूएल) को 130-140 लीटर तक दूध की सप्लाई करते हैं।

अपने लंबे सफ़र को याद करते हुए शंकर कहते हैं कि यह रास्ता बिल्कुल भी आसान नहीं था। उन्होंने कहा कि कृषि में एक अच्छा मुनाफ़ा कमाने के लिए आपको कम से कम 3-5 सालों तक संघर्ष करना पड़ता है। साथ ही, वह यह भी मानते हैं कि वह बिज़नेस की अच्छी समझ और विदेश में उनके अनुभव ने उनकी काफ़ी मदद की।

आय कम पर सुकून ज़्यादा

लंबे प्रोफ़ेशनल अनुभव के बाद शंकर, इन्फ़ोसिस में बड़े पद पर काम कर रहे थे। नौकरी छोड़ने और खेती को अपनाने के बाद उनकी आय में कमी ज़रूर आई है, लेकिन वह ख़ुद को पहले से अधिक संतुष्ट मानते हैं। उनका कहना है कि देश वापस लौटकर और खेती जैसे ज़मीनी काम से जुड़कर, उन्हें बहुत संतोष मिल रहा है। वह बताते हैं कि उनका भरोसा नैचुरल फ़ार्मिंग में ही है और इसलिए वह प्राकृतिक संसाधनों और तरीक़ों के माध्यम से ही खेती करते हैं। इतना ही नहीं, चार सालों के अभी तक के सफ़र में शंकर ने अपने खेत में ही एक घर बना लिया है और उन्हें अपनी ज़मीन, फ़सल और जानवरों के बीच रहना पसंद है।

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