भारत ने पहली बार समुद्र के रास्ते यूरोप भेजा लखनऊ का दस टन चौसा
"पहली बार समुद्री मार्ग से चौसा आम यूरोप भेजा गया है। पहले विमान से जाता था। नासिक में पहली बार इजराइली पद्धति से तीस टन आम की पैदावार हुई है। कुल उत्पादन की दृष्टि से इजराइल के बाद नंबर दो पर भारत में 15,026 टन, चीन में 4,351 टन, थाईलैंड में 2,550 टन और पाकिस्तान में 1,845 टन आम का उत्पादन होता है।"

सांकेतिक तस्वीर (Shutterstock)
कई काम जब पहली-पहली बार होते हैं, कौतुहल पैदा कर देते हैं कि वह काम करने वाला शख्स आखिर है कौन! मसलन, पहली बार समुद्री मार्ग से फलों का राजा मलिहाबादी दशहरी आम (चौसा) यूरोप भेजा गया है। पहली बार अमेरिका से भारत के रिश्ते में मिठास घोल रहा है मलिहाबादी आम। लगभग डेढ़ दशक पहले अमेरिका में भारतीय आम बैन थे। लंबे संघर्ष के बाद डेंटिस्ट डॉ. भास्कर सवानी को 2007 में अमेरिका ने भारतीय आम के आयात का लाइसेंस दिया था।
नासिक (महाराष्ट्र) में पहली बार इजराइली पद्धति से दस एकड़ में एक मैंगो फॉर्मर ने तीस टन आम की पैदावार की है। पहली बार शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी के कृषि वैज्ञानिकों ने खास तरह का एक ऐसा फार्मूला ईजाद किया है, जिससे जम्मू की जलवायु में आम के पेड़ अब हर साल फल देंगे। कवर्धा (छत्तीसगढ़) की लालपुर कला स्थित नर्सरी में पहली बार क्रॉस पद्धति से देसी आम के पेड़ पर दशहरी फल लेने के लिए तीन हजार पौधे लगाए गए हैं।
फिलहाल, पहली बार समुद्री मार्ग से मलिहाबादी दशहरी आम यूरोप भेजने की बात।
इससे पहले विमान से आमों की खेप विदेश जाती रही है। लखनऊ के समीप मलीहाबाद के मैंगो पैक हाउस से 10 टन चौसा आम की पहली खेप प्रयागराज के एक व्यापारी ने गुजरात के पीपावाव बंदरगाह से समुद्र के रास्ते यूरोप भेजी है। समुद्र जहाजों से आम यूरोप भेजने पर प्रति किलो 28 रुपये खर्च आ रहा है, जबकि वायुयानों से यह सवा सौ रूपये प्रति किलो पड़ता है। मैंगो पैक हाउस रहमानखेड़ा, मलिहाबाद (लखनऊ) इसी साल वेपर हीट ट्रीटमेंट प्लांट में अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुरूप तैयार इस मैंगो पैक की खेप जलमार्ग से भेजना संभव हो सका है।
गौरतलब है कि आम उत्पादन के मामले में इजराइल दुनिया भर में पहले स्थान पर है। नासिक (महाराष्ट्र) में मैंगो फार्म के मालिक जनार्दन वाघेरे ने अपने 10 एकड़ खेत में केसर आम की पैदावार लेने के लिए पहली बार इजलाइली पद्धति का प्रयोग किया तो प्रति एकड़ तीन टन आम की पैदावार हुई। जनार्दन बताते हैं कि भारत में आम उत्पादन में तीस बाइ तीस फीट का फॉर्मूला इस्तेमाल किया जाता है। इजराइल में आम की खेती में 'छह बाइ बारह' का फॉर्मूला इस्तेमाल किया जाता है यानी हर छह फीट की दूरी पर एक पेड़। एक से दूसरी कतार की दूरी 12 फीट होती है। जनार्दन ने आम के पौधों की बीच की दूरी कम कर तीन बाइ चौदह फीट करने के साथ ही रसायनों का मामूली इस्तेमाल किया। अब जनार्दन यह तकनीक महाराष्ट्र और गुजरात के किसानों को सिखा रहे हैं।
कुल उत्पादन की दृष्टि से इजराइल के बाद नंबर दो पर भारत में 15,026 टन, चीन में 4,351 टन, थाईलैंड में 2,550 टन और पाकिस्तान में 1,845 टन आम का उत्पादन होता है। जनार्दन बताते हैं कि इजराइल में मैंगो प्रोजेक्ट के कारण आम का रिकॉर्ड उत्पादन होता है। खेती से लेकर ब्रांडिंग तक की जिम्मेदारी मैंगो प्रोजेक्ट की होती है। इजराइल में सालभर में 50 हजार टन आमों का उत्पादन होता है, जिसमें से 20 हजार टन निर्यात हो जाता है। इजराइली आमों की पांच किस्मों का पेटेंट है, जिसे दूसरे देशों में नहीं उगाया जा सकता। इजराइली आम की पहली प्रजाति माया है। अब वहां शैली, ओमर, नोआ, टाली, ऑर्ली और टैंगो प्रजातियां विकसित कर ली गई हैं।