विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस विशेष: ‘बाल मजदूर’ के दलदल से निकल कर ‘समाज का आदर्श’ बनने की कहानी
इन बच्चों की प्रेरणादायक कहानियों ने न सिर्फ समाज के लिए एक आदर्श स्थापित किया है बल्कि यह कहानियां उन बच्चों की ऊर्जा और साहस का स्रोत बनेंगी जो आज भी बाल दासता के दलदल में कहीं न कहीं फंसे हैं.
जीवन में ऐसे कई मौके आते हैं जब इंसान विषम परिस्थितियों से गुजरता है. ऐसी स्थिति से इंसान अपने विवेक, सूझबूझ और कर्मठता से उबर सकता है. बस जरूरत है धैर्य, सहनशीलता, सकरात्मकता और आत्मविश्वास की. इस मंत्र के साथ इंसान सफलता की इबारत लिख सकता है. इसी मंत्र का अनुसरण करने वाले चार बच्चों की सफलता की कहानी आपको न सिर्फ प्रेरित करेगी बल्कि आपको इसका अहसास कराएगी कि वास्तविक जीवन में ‘पूर्ण विराम’ का कोई स्थान नहीं है.
मसलन, इस जीवन में अपार संभावनाएं हैं, जरूरी है कि आप अपने जीवन में लगे पूर्ण विराम को पीछे छोड़ एक के बाद एक सफलता की कहानी लिखते चले जाएं. कभी बाल श्रमिक रहे इन बच्चों ने दक्षिण अफ्रीका की धरती से ‘बाल श्रम’ को दुनिया से उखाड़ फेंकने का आहवाहन किया है. यह बच्चे हाल में दक्षिण अफ्रीका के डरबन में आयोजित हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 5वें सम्मेलन में शामिल हुए थे. आज इन बच्चों की दुनियाभर में चर्चा है.
इन बच्चों ने गरीबी, असमानता और अज्ञानता से जुड़े सारे पूर्वाग्रहों व मिथकों को ध्वस्त कर दिया है. बाल श्रम के मकड़जाल से निकलने वाले यह बच्चे न सिर्फ आज दुनिया को राह दिखा रहे हैं बल्कि बच्चों से कह रहे हैं कि ‘आप अकेले नहीं हैं, समूची दुनिया आपके साथ खड़ी है’. यह प्रेरणादायक यात्रा है राजस्थान के तारा बंजारा, अमर लाल, राजेश जाटव और झारखंड के बड़कू मरांडी की. आज जब विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस को प्रतीकात्मक रूप से मना रहा है तो इन बच्चों की संघर्ष की कहानियां दुनिया को राह दिखाती हैं. वो इसलिए कि इन बच्चों ने बाल श्रम के दंश को करीब से देखा है. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के मार्गदर्शन और उनकी संस्थाओं बचपन बचाओ आंदोलन, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन और बाल आश्रम (ट्रस्ट) के सहयोग से आज यह बच्चे आज़ाद हवा में अपने सपनों को जी भर के जी रहे हैं.
तारा का सपना है, हर बच्चा आज़ाद हो
बंजारा समुदाय से संबंध रखने वाली एक लड़की, न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपने परिवार के लिए भी लड़ी. पढ़ने की उम्र में उसे अपने कोमल हाथों के साथ कन्स्ट्रक्शन साइट पर काम करने को मजबूर होना पड़ा. जब वह स्कूल पहुंची तो परिस्थितियां ऐसी बनीं कि स्कूल छोड़ने का भी दबाव आया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. अब यह बेटी साउथ अफ्रीका में बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराने का मंत्र दे रही है. यह कहानी है अलवर जिले के थानागाजी के नीमड़ी बंजारा बस्ती में रहने वाली 18 वर्षीय तारा बंजारा की. परिवार के हालात की वजह से तारा ने महज 8 साल की उम्र में माता-पिता के साथ सड़कों पर सफाई का काम किया.
12 दिसंबर 2012 को तारा को बाल आश्रम ट्रस्ट के बंजारा शिक्षा के केंद्र से जोड़ा गया जहां उसने अपनी अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त की. पढ़ाई में उसकी ख़ासी दिलचस्पी को देखते हुए उसे औपचारिक शिक्षा से जोड़ा गया. उसके आसपास के गांवों में बंजारा समुदाय की ऐसी कोई भी लड़की नहीं है जिसने 12वीं की परीक्षा पास की हो. तारा बंजारा अपने समुदाय की पहली लड़की है जिसने कॉलेज में प्रवेश लिया है. तारा इस दौरान सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी लड़ती रही. वह चाहती थी कि जो हालात उसने देखे, वो कोई और बच्चा न देखे. वह बाल विवाह को अपने गाँव और आसपास के क्षेत्र में जड़ से मिटाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है. वह अपना और अपनी बहन का बाल विवाह रोकने में कामयाब रही है. इसके लिए तारा को 2017 में ‘रीबॉक फिट टू फाइट अवार्ड’ से भी सम्मानित किया जा चुका है.
तारा अब एक आईपीएस ऑफिसर बनना चाहती है. जिसके लिए वह लगातार मेहनत कर रही है. वह सुबह दौड़ लगाती है. आईपीएस ऑफिसर बनकर वह बाल श्रम, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करना चाहती है.
तारा कहती है “दुनिया बच्चों को अपनी जागीर समझती है, यह दुनिया वालों कि सबसे बड़ी भूल है. हर बच्चा जन्म से ही आजाद पैदा हुआ है. उसकी आजादी को उनसे कोई नहीं छीन सकता है. इसके लिए हम सब जिम्मेदार लोगों को आगे आकर प्रत्येक बच्चे को अपनी आजादी एवं खुले आसमान में सपने देखने के अवसर पैदा करने होंगे.”
बाल आश्रम राजस्थान में कैलाश सत्यार्थी व सुमेधा कैलाश द्वारा स्थापित देश का पहला दीर्घकालीन पुनर्वास केंद्र है, जिसमें बच्चों के रहने व शिक्षा की व्यवस्था की जाती है. आश्रम द्वारा संचालित बंजारा शिक्षा केंद्र द्वारा बंजारा समुदाय के बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाती है.
विषम परिस्थितियों को मात देने वाले ‘बड़कू’ की कहानी प्रेरणादायक
झारखंड राज्य के बड़कू मरांडी की कहानी दुनिया के लिए प्रेरणादायक है. गिरिडीह जिले के गांव कनिचिहार का रहने वाला एक अबोध लड़का जब सिर्फ 5-6 साल का था तभी उसके पिता का साया उससे उठ गया था. दो वक्त की रोटी के लिए उसे और उसके परिवार को संघर्ष करना पड़ा था. परिस्थितियों से लाचार उसे अपनी मां राजीना किस्कु और भाई के साथ माइका(अभ्रक) चुनने का काम करना पड़ा. वर्ष 2013 में काम करने के दौरान खदान में एक हादसा हो गया. इसमें मिट्टी के नीचे दबने के कारण बड़कू के एक दोस्त समेत दो लोगों की मौत हो गई. इस हादसे में बड़कू की एक आंख में गंभीर चोट आई. इसके चलते आज भी बड़कू को कम दिखाई देता है.
सितंबर, 2013 में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने कनिचियार गांव का चयन बाल मित्र ग्राम के रूप में किया तो बड़कू को माइका खदान से मुक्त करा स्कूल में दाखिला करवा दिया. उसके बाद बड़कू ने मुड़ कर नहीं देखा. वह अपने परिवार का पहला और गांव के उन चुनिंदा लोगों में शामिल है जिन्होंने 10वीं की परीक्षा पास की है. बीएमजी के तहत ही बड़कू को बाल पंचायत का मुखिया चुना गया. वह अब पढ़ाई के साथ-साथ बाल मित्र ग्राम के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा है.
बाल मित्र ग्राम बच्चों के अनुकूल दुनिया बनाने का, कैलाश सत्यार्थी का एक अभिनव प्रयोग है, जिसके जरिए गांवों में बाल मजदूरी के उन्मूलन, बाल विवाह पर रोक और बच्चों को स्कूल भेजने का कार्य किया जाता है. बच्चों में नेतृत्व विकसित करके बाल पंचायत का गठन किया जाता है.
अमर लाल और राजेश जाटव नयी पीढ़ी के लिए आदर्श
बंजारा समुदाय से आने वाले अमर लाल का संघर्ष भी प्रेरणादायक है. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह स्कूल भी कभी जा सकेंगे. अपने परिवार को आर्थिक मदद पहुंचाने की मंशा से पत्थर खदान में मजदूरी करने लगे थे. यह सिलसिला तब तक चला जब तक नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ने एक रेस्कयू ऑपरेशन के दौरान उन्हें मुक्त करवाया. इसके बाद अमर लाल को बाल आश्रम लाया गया. जहां से उनकी शिक्षा की शुरुआत हुई. शुरू से ही अमरलाल का रुझान बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने का रहा. आज समय देखिये, पत्थर की खदान खांकने वाला एक अबोध बालक कानून की पढ़ाई के बाद बाल अधिकार के वकील एवं कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहा है.
अमर लाल कहते हैं, ‘एक तरफ दुनियाभर में सरकारें युद्ध पर अरबों डॉलर खर्च कर रही हैं, दूसरी तरफ बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा जैसे प्रासंगिक मुद्दे संभवत: इनकी प्राथमिकताओं में नहीं हैं. बच्चों से संबंधित अधिकारों के लिए जमीनी स्तर पर और काम करने की जरूरत है.‘
अमर लाल की तरह राजेश जाटव को भी बचपन बचाओ आंदोलन ने राजस्थान के जयुपर जिले में एक ईंट-भट्टे से मुक्त करवाया था. वह उस समय आठ साल के थे. राजेश शारीरिक यातनाएं झेलने को मजबूर थे. उन्हें 18-18 घंटे काम करना पड़ता था. मुक्ति के बाद राजेश को बाल आश्रम भेजा गया, वहीं से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की. साल 2020 में बीएससी करने के बाद राजेश अभी उदयपुर में एमबीए इन फाइनेंस कर रहे हैं.
इन बच्चों की प्रेरणादायक कहानियों ने न सिर्फ समाज के लिए एक आदर्श स्थापित किया है बल्कि यह कहानियां उन बच्चों की ऊर्जा और साहस का स्रोत बनेंगी जो आज भी बाल दासता के दलदल में कहीं न कहीं फंसे हैं. यह सिलसिला यहीं नहीं रुकेगा और रुकना भी नहीं चाहिए. बच्चे आजाद होंगे और कैलाश सत्यार्थी के मार्गदर्शन व नेतृत्व में एक ऐसी बच्चों की फौज का निर्माण होगा जो सशक्त राष्ट्र के गठन में अहम भूमिका निभाएंगे.